Monday, 4 January 2016

लक्ष्य के लिये चलना बहुत जरुरी है आज तक कोइ एक जगह से लक्ष्य हासिल नही किया हैं ।


शतरंज में देश का सबसे ज्यादा जाने-पहचाने नाम विश्वनाथन आनंद के बारे में मशहूर है? कि वे कोई? चाल चलते वक्त आगे की पचास-साठ चालों, उसके फायदे नुकसान, प्रतिद्वंदी की प्रतिक्रिया आदि सबका हिसाब किताब दिमाग में लेकर चलते हैं। शतरंज की बिसात पर विशी की कामयाबी के पीछे उनकी यही एडवांस प्लानिंग जिम्मेदार मानी जाती है। लेकिन आज एडवांस प्लानिंग केवल शतरंज की चालों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि जीवन के सभी क्षेत्रों में इसकी उपयोगिता है। कॅरियर, पढाई, बिजिनेस, जॉब, प्रशासन, रिश्ते- नाते सभी जगह कामयाबी के लिए बेहतर प्लानिंग का कोई विकल्प नहीं है।
क्यों अहम है योजना निर्माण
अंग्रेजी का एक शब्द है एक्सटेम्पोर जिसका अर्थ होता है बिना किसी तैयारी के दिया गया भाषण, या कृ त्य। मुमकिन है हमारे आस-पास बहुत से लोग इस कला में माहिर हों व इसका फायदा भी उठाते हों, लेकिन यहां बात हो रही है हमारे आप जैसे सामान्य व्यक्ति की। ऐसे लोगों के लिए भाषण हो या जिंदगी का कोई फैसला, निर्णायक बढत के लिए योजना निर्माण जरूरी है। सच पूछे तो कोई भी काम शुरू करने से पूर्व हम सफल होंगे या नहीं, हमारी एडवांस प्लानिंग पर ही निर्भर क रता है। आजकल सामान्य व्यक्ति से लेकर अरबों डॅालर का टर्न ओवर देने वाली कंपनी तक सभी अपनी कामयाबी पक्की करने के लिए प्लानिंग पर खासा जोर देते हैं। माइक्रोसॉफ्ट, इंफोसिस, टाटा जैसे बडे-बडे नाम जो आज इतने सफल दिखते हैं, उनकी शुरुआत भी ऐसी ही दूरदर्शी योजना से हुई, तभी वे शिखर पर विराजमान हैं।
चरण1-1 जानें अपनी पोजीशन
क्रि केट में एक पुरानी कहावत है प्ले अकॉर्डिग टूमेरिट ऑफ द बॉल यानि गेंदों को उनकी गुणवत्ता के हिसाब से फेस करो। सही स्टांस के साथ ऐसा किया जाए तो आउट होने के मौके कम होंगे व रन भी आएंगे। इसी तरह योजना निर्माण के प्रथम चरण में भी हमें अपने स्टांस के साथ सामने आ रही समस्या की तासीर जानना आवश्यक है। कॅरियर प्लान करते वक्त कई छात्र प्लानिंग केइस आधारभूत पहलू से वाकिफ नहीं होते और नुकसान कर बैठते हैं। इस दौरान वे इन चीजों पर गौर करें तो फायदेमंद होगा।
- आपकी क्षमताएं क्या हैं/आप जो सोच रहे हैं वह वश में है भी या नहीं?
- आपकी आर्थिक क्षमताएं आपको कार्य की अनुमति देती हैं? यदि नहीं तो पहले इसके बारे में सोचें।
- आपके परिवार वाले इस बारे में क्या सोचते हैं?
- यदि आप किसी कोर्स या बिजिनेस के बारे में प्लान कर रहे हैं तो आज के साथ-साथ उसके आने वाले कल के संभावित स्कोप के बारे में भी पडताल करें।
चरण-2 नजर निशाने पर ही रहे
कहा जाता है कि बिखरे हुए लक्ष्यों से सफलता नहीं मिलती, हां कामयाबी का महल ढह जरूर जाता है। ऐसे में कोई योजना बनाते समय अपने मूल लक्ष्य को परे न होने दें। कई बार ऐसा होगा कि काम के दौरान आपके सामने कई और आकर्षक प्रस्ताव आएंगे, जिनसे आपका मूल लक्ष्य गौण होता दिखेगा पर यह आप पर है कि कैसे आप अपने इनीशियल टारगेट पर फोकस बनाए रखते हैं।
चरण-3 पहचानें राह के रोडों को देश का बजट बनाते वक्त सरकार एक खास तरह के मद में भी पैसा डालती है जिसे कंटेन्जेंसी फंड या आकस्मिक निधि कहते हैं, जिसका इस्तेमाल देश में किसी अप्रत्याशित दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा के वक्त होता है। ठीक इसी तरह कॅरियर मैपिंग के वक्त भी ऐसेआकस्मिक व्यवधान के लिए तैयार रहना होगा। बेहतर तो यह होगा कि कॅरियर खाका खींचते वक्त युवा राह में आने वाले अवरोधों को दिमाग में रखें और एक आक स्मिक प्लान जरूर बनाएं।
चरण-4 जरूरी है डेड लाइन
आज के तेज दौर में वक्त का मतलब है पैसा। आप कितना ही अच्छा काम क्यों न कर लो, तय समय बीत जाने पर उसका जरा मोल नहीं रहता। डेड लाइन रखते वक्त सहूलियत का ख्याल रखें। एक बार डेड लाइन तय हो जाने के बाद पीछे हटने का कोई मतलब नहीं।
चरण-5 प्रियॉरिटी को दें क्रम
प्लानिंग में वरीयताएं तय करने के बावत चेतन भगत कहते हैं कि आप कोई भी नया काम करें। चाहे नई लैंग्वेज सीखना हो, गिटार बजाना हो या फिर आईएएस की तैयारी ही क्यों न हो, रातों- रात कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। इसके लिए छोटे-छोटे लक्ष्य बनाएं, उन पर कार्य करें फिर दूसरे और बडे लक्ष्य को वरीयता दें।
काम की है प्लान मे¨कग
जनवरी 1981, जगह, मुंबई। आज का जाना पहचाना नाम नारायण मूर्ति जिनकी तब की पहचान महज एक इंजीनियर की थी। अपने छ: कंप्यूटर इंजीनियर दोस्तों के साथ किसी खास विषय पर माथा पच्ची कर रहे थे। गर्मागर्म बहसों, लंबी चौडी एक्सपेंडीचर प्लानिंग व दूसरी कई व्यावहारिक समस्याओं पर बातचीत चल रही थी। लक्ष्य निर्धारित किए जा रहे थे, डेड लाइन की चुनौती भी सामने थी व सबसे अहम बैकअप प्लान पर भी जोर दिया जा रहा था। करीब छ: महीने बाद इस पूरी कवायद का शानदार परिणाम इंफोसिस के रूप में आया। इस दौरान भले ही कंपनी का रजिस्टर्ड दफ्तर नारायणमूर्ति के दोस्त एस. राघवन का माटुंगा स्थिति छोटा सा घर हो, लेकिन यह मूर्ति और उनके दोस्तों की वृहत प्लानिंग ही थी कि महज 20 सालों केअंतराल में कंपनी आईटी जगत का सबसे भव्य महल बन गई।
1999 आते-आते कंपनी ने न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध होने वाली पहली भारतीय कंपनी का गौरव भी हासिल कर लिया। दरअसल यह सब बताने का मकसद यही है कि किसी काम को करने से पहले यदि आपके पास फुल प्रूफ प्लान है तो आपके सफल होने के मौके और ज्यादा हो जाते हैं। केवल व्यवसाय ही नहीं, जीवन के हर मोड पर कामयाबी के लिए यह आवश्यक शर्त का रूप ले चुका है।
सफलता का गारंटीड पाथ
किसी ने सच ही कहा है कि किसी भी उद्देश्य की पूर्ति में केवल कामना से ही बात नहीं बनती। उसके लिए परिश्रम के साथ योजनाबद्ध कार्यप्रणाली भी अनिवार्य होती है। इन सबके अभाव में आपकी समस्त इच्छाएं पानी के बुलबुले की तरह खत्म हो सकती है इस तथ्य की रौशनी में समझ सकते हैं कि आज प्लानिंग कामयाबी की वह पहली सीढी है, जिसकी मदद से आप कितनी ही ऊंचाई नाप सकते हैं, वह भी सौ फीसदी एक्यूरेसी के साथ। किसी कार्ययोजना को अंजाम देते समय हम किसी खास चीज का लक्ष्य रखते हैं, लेकिन होता यह है कि बेहद लंबी कार्य अवधि में हम मूल लक्ष्य से भटक जाते हैं। ऐसे में एक लांग टर्न प्लान हमें इन भटकावों से बचा बडे लक्ष्य की ओर अग्रसर कर सकता है।
खुद बनें मोटिवेटर
ऐसाइनमेंट, उसे पूरा करने का दबाव, रुटीन फॉलोअप, बॉस को जवाब देना। यानि काम, काम और सिर्फ काम। इन सबके बीच आप अमूमन एक तरह की जडता, नीरसता महसूस करते होंगे। इससे निजात पाने का सबसे बढिया तरीका है कि खुद को मोटीवेट करें। काम के लक्ष्यों को योजना के सांचे में ढालें और हर बार सफलतापूर्वक टास्क पूरा करने के बाद खुद की पीठ जरूर ठोंके।
बनाएं बेहतर रणनीति
आज प्रकाशन व्यवसाय में नया चलन काम कर रहा है। किसी लेखक की बडी किताब जारी करने से ठीक पहले प्रकाशक उस लेखक की कई छोटी-छोटी कहानियां व पुराने काम प्रकाशित करते हैं। इसका मकसद लाभ कमाना नहीं बल्कि सोची समझी रणनीति के तहत पाठकों के मन में लेखक के प्रति उत्सुकता पैदा करना होता है। इन सबके बीच जब लेखक की किताब बाजार में आती है, तो उसे हाथों-हाथ ली जाती है।
जरूरी है संसाधन
यदि आप जरूरी प्लानिंग व संसाधन से लैस हों, तो जरूर सफलता आसान हो सकती है। आप खुद महसूस करेंगे कि तैयारी में आडे आ रही कमियों से निपटने, तैयारी के लिए जरूरी ऊर्जा बरकरार रखने में इसका कितना फायदा मिलेगा। इन दिनों अमूमन हर सेक्टर में कंपनियां अपने कर्मचारियों के कौशल में वृद्धि के लिए प्रयासरत दिखती हैं। इस काम में प्लान्ड स्ट्रेटेजी खासी लाभदायक होती है। इसकी मदद से इंप्लाई हरदम लक्ष्य की तरफ देख पाता है।
कामयाबी रातों-रात नहीं मिलती
सफलता के लिए योजनाबद्ध प्रयासों की महत्ता बताते हुए लेखक व कॅरियर कोच चेतन भगत कहते हैं कि जीवन में कुछ भी अच्छा पाने के लिए लक्ष्य निर्धारित करने होते हैं। ये शॉर्ट टर्म या लॉन्ग टर्म दोनों ही तरह के हो सकते हैं। लेकिन इन दोनों की ही प्राप्ति के लिए आपको सेट पैटर्न फॉलो करना होता है व कोशिश करनी होती है कि आप शुरू से लेकर आखिरी तक पहले दिन बनाई गई योजना के अनुरूप ही चलें। कोई बात नहीं कि इस दौरान गति धीमी हो,लेकिन लक्ष्य प्राप्ति के लिए लगातार चलना बहुत जरूरी है ।

लक्ष्य से जीत तक

लक्ष्य से जीत तक

जीवन अनमोल है। आधुनिक युग में हर व्यक्ति बेहतर भविष्य, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं अच्छे जीवन के लिए  सदा प्रयत्नशील रहता है। आपको भी यदि सफल होना है; जीवन में कुछ पाना है; महान बनना है; तो निम्न  बातों को जीवन में अपना लीजिए ।
1. लक्ष्य निर्धारण - सर्वप्रथम हमें अपने जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करना है। एक लक्ष्य - बिलकुल निशाना साध कर। अर्जुन की चिड़िया की आँख की तरह। स्वामी विवेकानंद ने कहा था - जीवन में एक ही लक्ष्य साधो और दिन रात उस लक्ष्य के बारे में सोचो । स्वप्न में भी तुम्हे वही लक्ष्य दिखाई देना चाहिए । और फिर जुट जाओ, उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए - धुन सवार हो जानी चाहिए आपको । सफलता अवश्य आपके कदम चूमेगी । लेकिन एक बात का हमें ध्यान रखना है। हमारे लक्ष्य एवं कार्यों के पीछे शुभ उद्देश्य होना चाहिए। पोप ने कहा था - शुभ कार्य के बिना हासिल किया गया ज्ञान पाप हो जाता है । जैसे परमाणु ज्ञान - ऊर्जा के रूप में समाज के लिए लाभकारी है तो वहीं बम के रूप में विनाशकारी भी ।
2. कर्म - लक्ष्य निर्धारण के बाद आता है कर्म । गीता का सार है - कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन । कर्म में जुट जाओ। उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, जो आपने चुना है। हर पल । बिना कोई वक्त खोए। गांधी जी ने कहा था - अपने काम खुद करो, कभी दूसरों से मत करवाओ। गांधी जी खुद भी अपने सभी कार्य खुद करते थे। दूसरी बात जो गांधी जी ने कही थी - जो भी कार्य करो, विश्वास और आस्था के साथ, नही तो बिना धरातल के रसातल में डूब जाओगे। यह अति आवश्यक है कि हम अपने आप पर विश्वास और  आस्था रखें, यदि हमें अपने आप पर ही विश्वास नही है तो हमारे कार्य किस प्रकार सफल होंगे? जरूरी है - अपने आप पर मान करना, स्वाभिमान रखना । विश्वास और लगन के साथ जुटे रहना । हमारे कार्यों से हमेशा एक संदेश मिलना चाहिए । नेहरू जी से मिलने एक बार एक राजदूत, एक सैनिक एवं एक नवयुवक मिलने आए । तो नेहरू जी ने सबसे पहले नवयुवक को मिलने के लिए बुलाया, फिर सैनिक को एवं सबसे बाद में विदेशी राजदूत को । बाद में सचिव के पूछने पर बताया कि नवयुवक हमारे देश के कर्णधार हैं, सैनिक देश के रक्षक; उनको सही संदेश मिलना चाहिए । बिना बोले हमारे कर्मों से समाज को संदेश मिलना चाहिए ।
3. अवसर - हर अवसर का उपयोग कीजिए। कोई भी मौका हाथ से न जाने दीजिए । स्वेट मार्टेन ने कहा था - अवसर छोटे बड़े नही होते; छोटे से छोटे अवसर का उपयोग करना चाहिए। चैपिन ने तो यहां तक कहा कि जो अवसरों की राह देखते हैं, साधारण मनुष्य होते हैं; असाधारण मनुष्य तो अवसर पैदा कर लेते हैं । कई लोग छॊटे छॊटे अवसर यूं ही खॊ देते हैं कि कोई बड़ा मौका हाथ में आएगा, तब देखेंगे। यह मूर्खता की निशानी है।
4. आशा / निराशा - आप कर्म करेंगे तो जरूरी नही कि सफलता मिल ही जाए। लेकिन आपको घबराना नही है। अगर बार बार भी हताशा हाथ आती है, तो भी आपको निराश नही होना है । मार्टेन ने ही कहा था - सफलता आत्मविश्वास की कुंजी है । ग्रेविल ने कहा था - निराशा मस्तिष्क के लिए पक्षाघात (Paralysis) के समान है| कभी निराशा को अपने पर हावी मत होने दो । विवेकानंद ने कहा था - 1000 बार प्रयत्न करने के बाद यदि आप हार कर गिर पड़े हैं तो एक बार फिर से उठो और प्रयत्न करो । अब्राहम लिंकन तो 100 में से 99 बार असफल रहे। जिस कार्य को भी हाथ में लेते असफलता ही हाथ लगती । लेकिन सतत प्रयत्नशील रहे। और अमेरिका के राष्ट्रपति पद तक जा पँहुचे । कुरान में भी लिखा है - मुसीबतें टूट पड़ें, हाल बेहाल हो जाए, तब भी जो लोग निश्चय से नही डिगते, धीरज रख कर चलते रहते है, वे ही लक्ष्य तक पहुँचते हैं ।
 5. आलस्य - आलस्य को कभी अपने ऊपर हावी मत होने दो । कबीर की यह पंक्तियां तो हम सभी के मुंह पर रहती हैं - काल करे सो आज कर । और यह मत सोचो कि आपका काम कोई दूसरा कर देगा । राबर्ट कैलियर ने कहा था - मनुष्य के सर्वोत्तम मित्र उसके दो हाथ हैं । अपने इन हाथों पर भरोसा रखो एवं सतत प्रयत्नशील रहो ।
6. निंदा/ बुराई - जब हमने लक्ष्य ठान लिया है, कर्म कर रहे हैं, अवसरों का उपयोग कर रहे हैं, निराशा से बच रहे हैं, सतत आगे बढ़ रहे हैं तो राह में हमें कई प्रकार के लोग मिलते हैं । हमारे विचार, दृष्टिकोण, लक्ष्य परस्पर टकराते हैं। लेकिन हमें एक चीज से बचना है । दूसरों की बुराई से, उनकी निंदा से । रिचर्ड निक्शन ने कहा था - निंदा से तीन हत्याएं होती हैं; करने वाले की, सुनने वाले की और जिसकी निंदा की जा रही है । स्विफ्ट ने कहा था - आदमी को बदमाशियां करते देख कर मुझे हैरानी नही होती है, उसे शर्मिंदा न देखकर मुझे हैरानी होती है। इसलिए आवश्यक है कि हम अपनी गलतियों को सहर्ष कबूलें । हम इंसान हैं, हमसे गलतियां भी होंगी। लेकिन गलती को मान लेना सबसे बड़ा बड़प्पन है । और इन गलतियों से सीख लेते हुए हमें आगे बढ़ना है ।
7. परोपकार - हमारे लक्ष्य, हमारे कर्मों में कहीं न कहीं परोपकार की भावना अवश्य होनी चाहिए। चाहे वह हमारे समाज, जाति, देश, धर्म, परिवार, गरीबों के लिए हो । परोपकार की भावना जितने बड़े तबके के लिए होगी आप उतने ही महानतम श्रेणी में गिने जाएंगे । गांधी जी ने कहा था - जिस देश में आप जन्म लेते हैं, उसकी खुश हो कर सेवा करनी चाहिए । तुलसीदास जी ने कहा है - परहित सरिस धर्म नहि भाई । नेहरू जी ने भी कहा था - कार्य महत्वपूर्ण नही होता, महत्वपूर्ण होता है - उद्देश्य; हमारे उद्देश्यों एवं कर्मो के पीछे परोपकार की भावना निहित होनी चाहिए ।
8. जीत - आपने लक्ष्य ठाना; कर्म कर रहे हैं; अवसरों का उपयोग कर रहे हैं; निराशा, आलस्य और निंदा से बच रहे हैं; परोपकार की भावना से निहित हैं । बस एक ही चीज अब बचती है । जीत । जीत निश्चित ही आप की है । ऋग्वेद में भी लिखा है - जो व्यक्ति कर्म करते हैं, लक्ष्मी स्वयं उनके पास आती है, जैसे सागर में नदियां ।
जो इन सब पर चलते हैं, असाध्य कार्य भी संभव हो जाते हैं । दो उदाहरण देना चाहता हूँ -
1. एक गुरू ने अपने शिष्यों को बांस की टोकरियां दी और कहा कि इनमें पानी भर कर लाओ। सभी शिष्य हैरान थे, यह कैसा असंभव कार्य गुरूजी ने दे दिया । सब तालाब के पास गए । किसी ने एक बार, किसी ने दो बार और किसी ने दस बीस बार प्रयत्न किया । कुछ ने तो प्रयत्न  ही नही किया । क्योंकि पानी टोकरी में डालते ही निकल कर बह जाता था। लेकिन एक शिष्य को गुरू पर बहुत आस्था थी, वह सुबह से शाम तक लगातार लगा रहा। प्रयत्न करता रहा। शाम होते होते धीरे धीरे बांस की लकड़ी फूलने लगी और टोकरी में छिद्र छोटे होते गए और धीरे धीरे बंद हो गए। इस तरह टोकरी में पानी भरना संभव हो सका ।
2. 1940 के ओलंपिक खेलों में शूटिंग के लिए सभी की नजरें हंगरी के कार्ली टैकास पर टिखी थीं; क्योंकि वह बहुत अच्छा निशाने बाज था । लेकिन विश्वयुद्ध छिड़ गया । 1944 में भी विश्वयुद्ध के चलते ओलंपिक खेल नही हो पाए । विश्वयुद्ध तो समाप्त हो गया लेकिन 1946 में एक दुर्घटना में कार्ली का दायां हाथ कट गया । जब हाथ ही नही तो शूटिंग भला कैसी ? कार्ली ने घर छोड़ दिया । सबने सोचा निराशा के कारण कार्ली ने घर छोड़ दिया है । लेकिन जब 1948 में लंदन में ओलंपिक खेल हुए तो सबने हैरानी से देखा कि शूटिंग का गोल्ड मैडल लिए कार्ली खड़ा है। बाएं हाथ से गोल्ड मैडल जीता ।
9. अहंकार - जीत आपने प्राप्त कर ली । अब एक बात का और ध्यान रखना है । कभी अहंकार को अपने ऊपर हावी नही होने देना है । अहंकार मनुष्य के विनाश का कारण बनता है। सहजता और सौम्यता बड़प्पन के गुण हैं । शेक्सपीयर ने कहा था - अहंकार स्वयं को खा जाता है । अपनी दो पंक्तियों के साथ -
हिम बन चढ़ो शिखर पर यां मेघ बन के छाओ,
रखना है याद तुम्हे सागर में तुमको मिलना ।

पोस्ट BY बब्बु

योग-प्राणायाम के अभ्यास में आड़े आने वाली आंतरिक बाधाएं

योग चिकित्सा हम जारी क्यों नहीं रख पाते हैं ? हम गोलियां खाकर क्यों ठीक होना चाहते हैं ? रोग तो हम पैदा करते है लेकिन चाहते हैं कि डाॅक्टर ठीक कर दे । मनुष्य सरल रास्ता पसंद करता है । हम कठोर कदम पसंद नही करते हैं । सुविधा पसंद क्यों हो गए हैं ? ठीक होना सब चाहते हैं लेकिन सरल रास्ते से व अपनी शर्तों पर इसलिए ठीक नहीं हो पाते है ।
योगासन व प्राणायाम करते वक्त बहुत से विघ्न आते हैं । मन कहता है कि अरे इन आसनों से क्या हो जाएगा । ज्यादा योग मत करो । कभी मन नहीं लगता है । कभी ब्रेक लेने का मन करता है। कभी शरीर जंभाई लेने लगता है । कभी थकान का भाव मन में आता है । कभी कमजोरी लगती है । कभी कहीं दर्द उठता है ।
young woman training in yoga pose on rubber mat isolated
हम योग क्यों नहीं करते है ? अधिकांश लोगों को योग करना सुहाता नहीं है । योग करने में समस्याएं क्या है ? इसका महत्व नहीं जानने वाले योग नहीं करते हैं । योगाभ्यास जारी रखने में प्रमुख बहाने वाली बाधाएं निम्न प्रकार से हैः-
1. आत्मछवि – हम अपने मन में अपनी छवि रखते हैं । यह जब खराब होती है तो व्यक्ति यथा स्थिति वादी रहता है । ऐसे मे वह परिवर्तन का विरोध करता है । वह अपनी आदतों को बदलना नहीं चाहता है व उसमे स्वयं को सुरक्षित समझता है । ऐसे लोग हताश हो जाते हैं ।
2. नजरिया – स्वस्थ दृष्टिकोण के अभाव में व्यक्ति अच्छी तरह सोच नहीं सकता है । उसे योग प्राणायाम बोरियत लगते हैं । वह अपने पूर्वाग्रहों के कारण उसका महत्व समझ नहीं पाता है ।
3. लगाव – कुछ व्यक्यिों का लक्ष्य स्पष्ट नहीं होता है । अतः स्वास्थ्य को महत्व नहीं देते हैं । धन व शोहरत कमाने में डुबे रहते हैं । योग से स्वयं अपना लगाव नहीं स्थापित कर पाते हैं । कामुक व पेटु व्यक्ति योग पसंद नहीं करता है । इनके पास योग नहीं करने के अनेक बहाने होते हैं ।
4. योग की शक्ति पर अविश्वास – हमें योग की शक्ति पर भरोसा नहीं होता है । ‘‘योग से क्या हो जाएगा’’ की तरह की बात करते हैं । उन्हे सदैव संशय रहता है । ऐसे व्यक्ति योग नहीं करते हैं ।
5. गलतफहमियां – कुछ व्यक्ति गलतफहमियों के कारण योगाभ्यास नहीं करते हैं । वे अपनी सुविधा अनुसार बातों की व्याख्या कर लेते हैं । ऐसे व्यक्तियो के मन में योग के प्रति कोई दुर्भावना होती है । वे योग का सही मूल्य नहीं जानते हैं।
6. बीमारी – शरीर बीमारी के कारण योग करने में असमर्थ होता है इसलिए बीमार लोग नियमित योग कर नही पाते । रोगी के कुछ अंग जकड़ जाते हैं या कड़क हो जाते हैं । शारीरिक कमजोरी के कारण कुछ लोग योग कर नहीं पाते हैं ।
7. आलस्य – कुछ व्यक्ति सुस्ती के कारण योग नहीं कर पाते हैं । योग करते वक्त उन्हे जंभाई आती है । प्रतिदिन चाहकर भी ऐसे व्यक्ति योग निरन्तर कर नहीं पाते हैं । समय नही का रोना सदैव रोते रहते हैं ।
8. लापरवाही – कुछ साथी ‘सब चलेगा’ के भाव में जीते हैं । अतः योग करना उन्हे कठिन लगता है । अतः स्वयं के प्रति भी जिम्मेदारी नहीं लेते हैं । ऐसे लोग कार्याें की प्राथमिकता तय नहीं करते हैं । जो प्रत्यक्ष होता है वही करते है । वे सबके लिए दूसरों को दोष देते हैं । ऐसे लोग खुद सकारात्मक नहीं होते हैं ।
9. थकान – सदा थकान अनुभव करने वाले भी योगासन अच्छी तरह कर नहीं पाते हैं । कुछ लोग थकान के कारण योग करने से डरते हैं ।
10. अज्ञान-अशिक्षा

क्षमा कर तनाव मुक्त होएं

मा कीजिए, मेहरबान,
आज क्षमा वाणी का पर्व है। जैन दर्शन का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं। जैन धर्म में क्षमा का बडा महत्व बताया है। पर्युषण पर्व की समाप्ति पर जैनी परस्पर क्षमा मांगते है।लेकिन आज यह एक रस्म अदायगी बन गया है। क्षमा माॅगने के क्रम में भी हम लोग पाखण्ड बढाते जा रहे है।  मैं मन ,वचन, काया से किये गये ंअपनी गलतियों व भूलों के लिए आप सब से क्षमा मागंता हुॅ।यह में एक कर्मकाड की तरह औपचारिकता भर निभा रहा हुॅ।इसी बहाने  क्षमा पर विवेचना भी कर रहा हुॅ । Forgive us
भगवान महावीर ने  क्षमा वीरस्य भूषणम कहा है। जैसा कि क्षमा एक व्यवहार ुशलता ही नहीं बल्कि एक सद्गुण भी है। क्षमा एक धर्म भी है। क्षमा कर आप बड़प्पन दिखाते है एवं स्वयं के लिए शान्ति खरीदते है। क्षमा करने में कोई धन नहीं लगता है। क्षमा भविष्य के संबंधो का द्वार है इसी से संबंध बनते है। क्षमा करने वालो को पछताने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
क्षमा करने की आदत होनी चाहिये। दिल से माफ करना चाहिए व दिल से क्षमा मांगनी चाहिए। जब आप शब्दो से क्षमा मांगते है  वह मात्र 10 प्रतिशत है, आॅखों से क्षमा मांगना 20 प्रतिशत है, दिमाग से मांगना 30 प्रतिशत है एवं 40 प्रतिशत मांगना दिल से होता है। सामने वाला व्यक्ति आपकी देह भाषा को पढ़ लेता है। इसलिए क्षमा मन, वचन एवं कर्म से मांगनी चाहिए। मात्र शब्दों से क्षमा न मांगे। दूसरों को माफ कर आप अपने तनावों का मिटाते हैं। स्वयं पर उपकार करते है।
स्वयं को क्षमा करना सबसे बड़ी व पहली क्षमा है। माफी से माफ करने वाला भी हलका होता है।उसे लगता है जैसे क्षमा करने से उसके सिर से बोझ उतर गया है। क्षमा करनें में दूसरा व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण नहीं है। क्षमा आप अपने से प्रारम्भ करें व सबको क्षमा करें। तभी तों किसी नें ठिक ही कहा है कि दुश्मन के लिए भट्टी इतनी गरम न करे कि आप भी उसमें जलने लगे।
कुछ लोग क्षमा को कमजोरों का हथियार मानते है। क्षमा करने से दुर्जनों को बल मिलता है ऐसा कहते है। क्षमा करना दण्ड व्यवस्था के विपरीत है। स्वाभिमान भी जैसे के साथ तैसा व्यवहार करने को कहता है। मेरे मन का एक अंश क्षमा के विरूद्ध है। मुझे भी तो सभी क्षमा नहीं करते फिर मैं क्यों माफ करूं। मुझे माफ करने में मुझे मूर्खता, बेवकूफी, दुश्मनों का प्रोत्साहन देने जैसा लगता है। उपरोक्त तर्क में दम कम है। लेकिन तर्को की अपनी सीमा है। तर्क हमेशा सत्य पर नहीं ले जाते है।
यदि मैं दिल से क्षमा नहीं मांगता हूं तो मुझे भी क्षमा नहीं मिलती है। प्रकृति या आत्मा या मन एक कल्पवृक्ष है। हम सब यहां जैसा जितनी गहराई से मांगते हैं वैसा ही परिणाम पाते है। इसलिए दिल से क्षमा मांगना जरूरी है। मांफी मांगने के पूर्व स्वयं के मन की एकरूपता, सच्चाई व पूर्णतया आवश्यक है।
भगवान बुद्ध अपने पर थूंकने वाले को क्षमा कर देते है। भगवान महावीर चण्डकोशिक को काटने पर क्षमा कर देते है। भगवान ईसा ने तो स्वयं को सूली पर चढ़ाने वालों के लिए कहा था ‘‘हे प्रभु! इन्हें क्षमा करना ये नहीं जानते हैं कि ये क्या कर रहें है।’’ ईसाई धर्म में भी क्षमा हेतु चर्च में एक कक्ष होता है जहां जाकर व्यक्ति अपने कृत्यों पर प्रभु से क्षमा मांगता है।
मैंने  अपनी तरह से सबकों तहे दिल से माफ कर दिया है। मैंने स्वयं को भी बक्श दिया है। क्या आप मुझे माफ करेगें ? क्या आप मुझे माफ कर सकतें है ?
उत्तम क्षमा, सबको क्षमा, सबसे क्षमा

महान् लेखक बनने की कंुजी और मोपासां

प्रसिद्ध फ्रासीसी साहित्यकार मोपासां ;डंनचंेेंदजद्धबचपन से ही लेखक बनने की जिद करने लगा था। तब उसकी समझदार मां अपने परिचित प्रसिद्ध लेखक फ्लोएर्बेट ;थ्संनइमतजद्ध के पास ले गई एवं उनको बताया कि मेरा बेटा लेखक बनना चाहता है। अतः वह आपसे लेखक बनने के सूत्र जानना चाहता है।GDMaupassant
वे उस समय व्यस्त थे। फ्लोएर्बेट ने एक माह बाद बुलाया।
ठीक एक माह बाद बच्चा मोपासां उनके पास पहुँच गया। उन्होने उसे पहचाना नहीं तब उसने अपनी मां का परिचय देकर बताया कि वह लेखक बनने के सूत्र सिखने आया था तब आपने एक माह बाद आने को कहा था।
तब फ्लोएर्बेट ने टेबल पर पड़ी एक किताब उसे दी और कहा कि इसे याद करके आओ।
मोपासां उस किताब को महीने भर में पूरी तरह याद कर फिर उनके पास पहुँच गया। तब गुरु ने फिर पूछा कि क्या पूरी किताब याद कर लीं।
मोपासां ने कहा-हां कहीं से भी पूछ लिजिए। वह किताब एक बड़ी डिक्शनरी थी।
फ्लोर्बेएट आश्चर्य से उस बालक को देखते रहे फिर पूछा कि खिड़की के बाहर से क्या दिखाई देता है?
बालक ने कहा ‘‘पे़ड’’- कौनसा पेड़-‘‘पाईन का पेड़’’
ओह, ठीक से देखो-‘‘ पास के तीसरे मकान की तीसरी मंजिल से एक लड़की झांक रही है।’’
‘‘और अच्छी तरह देखो’’
तब उसने कहां -‘‘आकाश में चिडि़या उड़ रही है।’’
हां, अब ठीक है।
वह पेड़ सिर्फ पेड़ नहीं है। वह तीन मंजिला मकान, खिड़की से झाँकती लड़की,, वह आसमान, वह चिडि़या, वे सभी उस पेड़ से जुड़े हुए है। पेड़ कभी अकेला नहीं हो सकता है। इसी तरह आदमी के मामले में उसके आस-पास का समाज, उसकी वंश-परम्परा, उसके नाते-रिश्ते के लोग, उसके दोस्त-यार, इन सबको मिला कर ही वह आदमी है। इस तरह वातावरण का भी योगदान होता है। इस तरह की विस्तृत दृष्टि चाहिए।तब जाकर ही साहित्य बनता है।
उसी दिन से मोपासां ने उन्हें अपना गुरु बनाकर उनके सूत्रों का अनुसरण कर एक महान् लेखक बने।

विश्राम क्यों जरूरी : विश्राम न कर पाने के दुष्परिणाम

विश्राम न कर पाने के कारण व्यक्ति बेहोशी में जीता है। उसकी यांत्रिकता बढती जाती है। व्यक्ति सदैव थका मांदा सा जीता है। जीवन पर विश्वास, स्वयं पर विश्वास, अस्तित्व पर विश्वास व्यस्त व्यक्ति नहीं रख पाता है। इससे आत्महीनता व अनेक ग्रन्थियों का जन्म होता है। शारीरिक ग्रन्थियां शरीर में हार्मोन्स का स्राव करती हैं। मानसिक गांठें स्नयु का संतुलन बिगाड़ती हैं। फलस्वरूप अनेक बार व्यक्ति शारीरिक व्याधियों का शिकार होता है।
थका हुआ व्यक्ति श्वास तीव्र व छोटी लेता है। श्वास में समस्वरता व स्थिरता नहीं रहती है। अतः प्रायः अस्थमा का शिकार हो जाता है। जुकाम-खांसी के प्रति संवेदनशील हो जाता है। व्यक्ति की प्रतिरोध क्षमता घट जाती है।
कुछ व्यक्ति पेट के रोगों के शिकार होते हैं। आंतें खिंची रहने से कब्जी, गैस, अपच एवं बवासीर का दुःख उठाते हैं। ढंग से विश्राम न करने वाले व्यक्ति स्वाद का शिकार होते भी देखे जा सकते हैं, जो अन्ततः पेट की बीमारियों का कारण बनते हैं।
जो व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत नहीं होते वे मानसिक रोगी हो जाते हैं। प्रायः सभी मनोरोगी गहरी नींद नहीं लें पाते हैं एवं मनोरोगियों की चिकित्सा का जोर रोगियों को विश्राम देना, नीेंद की दवा देना है। अवसाद व टूटन का मुख्य कारण थकान ही होता है। थकान से व्यक्ति के जीवन का संतोष समाप्त हो जाता है। व्यक्ति सदैव बैचेन रहता हैै। जिसको विश्राम करना नहीं आता है उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। ऐसे शख्स कुछ पाने को सदैव आतुर रहते हैं। निरन्तर कुछ पाने की आकांक्षा मानव को चैन से जीने नहीं देती है।
हम अव्यवस्थित, विश्राम के अभाव में जीते हैं। विश्राम के न होने से मनुष्य का मन स्थिर नहीं होता है। वह अनेक दिशाओं में विभाजित होता है। यही खण्ड जीवन है। टुकड़ों-टुकड़ों में जीवन जीने से जीवन जीने में व्यवस्था नहीं आती है। खण्डित मन समग्रता में नहीं जी पाता है। यही अराजकता व्यक्ति को तोड़ती है। स्वयं से दूर ले जाती है एवं व्यक्ति को थका देती है। थका हुआ व्यक्ति सब जगह परेशानी अनुभव करता है। परेशानियां कहीं से खरीदनी नहीं पड़ती है, यह अव्यवस्था से उपजती हैं। अव्यवस्थित सोच इसकी जड़ में होंती है। इस प्रकार संतुलन की कमी व्यक्ति को भावनात्मक रूप से भी तोड़ देती है। व्यक्ति का सोच सकारात्मक नहीं रहता है, जिससे उसका दृष्टिकोण नकारात्मक बन जाता है।
जीवन में टालमटोल की वृत्ति थकान का परिणाम है। थका हुआ मन कार्य से बचना चाहता है। अतः वह कार्य से बचने के बहाने खोजता है। पलायनवाद हवा से नहीं उपजता है। यह एक मनःस्थिति है जो विश्राम खोजती है। विश्राम को जानने वाला कभी भी कामचोरी नहीं करता है।
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चीनी तम्बाकु से तीन गुना अधिक हानिकारक

शक्कर एक तरह का जहर है जो कि मूख्यतः मोटापे, हृदयरोग व कैंसर का कारण है । भारतीय मनीषा ने भी इसे सफेद जहर बताया है ।tobacco डाॅ0 मेराकोला ने इसके विरूद्ध बहुत कुछ लिखा है । डाॅ0 बिल मिसनर ने इसे प्राणघातक शक्कर-चम्मच से आत्महत्या बताया है । डाॅ0 लस्टींग ने अपनी वेब साईट डाॅक्टर में इसे विष कहा है । रे कुर्जवले इस सदी के एडिसन जो कि 10 वर्ष अतिरिक्त जीने अपने वार्षिक भोजन पर 70 लाख रूपया खर्च करते हैं ने अपने आहार में अतिरिक्त चीनी लेना बन्द कर दी है ।

अधिक शक्कर से वजन व फेट दोनों बढ़ते हैं । डाॅ0 एरान कैरोल तो स्वीटनर से भी चीनी को ज्यादा नुकसानदेह बताते हैं । चीनी खाने पर उसकी आदत नशीले पदार्थ की तरह बनती है । प्राकृतिक शर्करा जो फल व अनाज में तो उचित है । sugar is poision
हम जो चीनी बाहर से भोजन बनाने में प्रयोग करते हैं वह विष का कार्य करती है । यह शरीर के लिए घातक है । डिब्बाबन्द व प्रोसेस्ड फूड में चीनी ज्यादा होती है उससे बचे । अर्थात् पेय पदार्थ व मिठाईयांे के सेवन में संयम बरतना ही बेहतर है।

कौनसा तेल खाए ?

डाॅक्टर बुडवीज तलने के लिए बहुअसंत्रप्त तेल ( poly unsaturated oil) प्रयोग करने के विरुद्ध थी। संतृप्त वसा को गर्म करने पर आॅक्सीकृत नहीं होते हैं और इसलिए गर्म करने पर उनमें एचएनई भी नहीं बनते हैं। Edible Oil इसलिए घी, मक्खन और नारियल का तेल कई दशकों से मानव स्वास्थ्य को रोगग्रस्त करने की बदनामी झेलने के बाद आज कल पुनः आहार शास्त्रियों के चेहते बने हुए हैं। ये शरीर में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 का अनुपात भी सामान्य बनाए रखते हैं।
गृहणियों को खाना बनाने के लिए रिफाइंड तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बल्कि फील्टर्ड तेल का प्रयोग करना चाहिए। इससे भी अच्छा कच्ची घाणी से निकला तेल होता है। हमें कच्ची घाणी से निकला नारियल तेल ,सरसों का तेल या तिल का तेल काम में लेना चाहिए। क्योंकि ये तेल हानिकारक नहीं होते है।
सबसे बढि़या तेल जैतून का तेल होता है जो हमारे यहाँ बहुत मंहगा मिलता है। इसके बाद तिल का तेल (शीसेम आॅयल) एवं सरसों का तेल खाना चाहिए। मूंगफली के तेल में कोलोस्ट्राल की मात्रा ज्यादा होती है अतः वह भी कम खाना चाहिए।
वैसे एक मत है कि हमें अपने आसपास जो तिलहन उगता है उसीका तेल खाना चाहिए।
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रिफाइंड तेल से कैंसर हो सकता है?

क्या पोषक आहार के होते हुए पुरक आहार की जरूरत है ?

वनस्पति घी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है

आदर्श स्वास्थ्य एवं जीवन शैली पर पुनर्विचार की आवश्यकता

आरोग्यम् का उद्वेश्य व्यक्ति को स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदार बनाना है। चिकित्सा कार्य सेवा की जगह कमाने का जरिया बन गया है। दवा कम्पनियो ने इसका दोहन व शोेषण शुरू कर दिया है। ऐलोपेथी दवा के प्रभाव से सबसे अधिक मौेते हो रही है। यद्वपि इस विधा ने कई जाने बचाई भी है। हमारा उद्वेश्य ऐलोपेथी का विरोध करना नहीं है। उसका भी योगदान स्वीकार है। विज्ञापन की बदोलत व शार्टकट की खोज ने अन्य विश्वसनीय वेैकल्पिक चिकित्सा को भुला दिया है। चुकि ये मौते तत्समय नही होती है। दीर्घकाल में हानि पहुचाती है , अतः इनसे सम्बन्ध स्थापित करना कठिन है।
हम स्वस्थ रहने हेतु जन्मे है ।शरीर प्रकृति का दिया हुआ उपहार है । हमें उसे संभालना नहीं आता है । प्रकृति अनुरूप नही जीते हैं तभी बीमार होते हैं । प्रकृति की सहज व्यवस्था मनुष्य को स्वस्थ रखने की है । हमारी जीवन शैली रोगों के लिए जिम्मेदार है । मेरा रोग मेरे कारण है। मेरा स्वास्थ्य मेरी जिम्मेदारी है। दूसरो को इस हेतु दोष नही देता हॅू । बच्चा जन्मता स्वस्थ है व बुढापे में बीमार होकर करता है । इस यात्रा में रोग कहाॅ से आया व कौन लाया ? उसके लिये कौन जिम्मेदार है ? Related posts:

प्रेम मंे छिपा है द्वंद्व एवं द्वंद्व मे छिपा है अद्वैत का छंद

वेलेन्टाइन दिवस पर प्रेम का गहन विश्लेषण करता कहानीकार एवं प्रेम खोजी हिमालयी यायावर सैन्नी अशेष का प्रेम और मैत्री नामक लेख ‘‘अहा ! जिंदगी’’ के फरवरी 2014 के अंक में छपा है । इसमे लेखक ने प्रेम के सभी स्वरूपों को तलाशते हुए लिखा है कि आज स्त्री-पुरूष दोनों प्यार में होते हुए भी उसी को तलाशते नजर आते हैं… कहीं संतुष्टि नहीं है तो कहीं रजामंदी नहीं है । इस तरह का द्वन्द्व सबमे है । इस दुविधा से पार पाने की लेखक ने कला निम्न बताई है ।
प्रेम क्या है ?
‘ब्रह्मांड अपनी असीमाओं का दीवाना है । निराकार को आकार देने के उसके अपने दो धर्म है: परस्पर विरोधी ध्रुव, नेगेटिव और पाॅजिटिव ! उनके मिलन से वह स्वयं को सुंदरतर करता आया है। विपरित ध्रुव के मिलन से नवजीवन की रचना होती है।उन दोनों की आपसी कशिश ही सारी दोस्तियों और सारी मुहब्बतों को नए आकाश देती है।द्वंद्वो का स्वीकार ही दो दीयांे को अभिन्न लपट बना सकता है ।’
अस्तित्वगत चेतना ने मानव आत्मओं का नारी और पुरूष में विभाजन गहरे अर्थ से किया है । दोनों में यदि दोनों मौजूद न होते तो एक-दूसरे की खोज में वे इतने दीवाने न होते । अपने संबंधो के उपरले स्तर की उत्तेजना से मुक्त हो जाने के बाद ही वे तन और मन के आत्मिक स्पर्श तक पंहुचते हैं ।’
पाखण्ड क्या है ?
‘स्त्री-पुरूष के पारस्परिक प्रेम और निकटताओं में छिपे हुए परमावश्यक पोषण से आज का पुरूष वर्ग लगभग पूर्णतया वंचित है, क्यांेकि इस संपर्क की पुरी पट्टिका को उसने अपने पशु की मांसल भूख से दूषित कर रखा है । आज कई स्त्रियां पुरूष को हराने के लिए उसी के जैसा कुटिल मार्ग चुनने लगी है ।
‘‘ज्यों ही हम मूल स्वभाव की अनदेखी करके नियमों या नैतिकताओं का विधान बनाते है, हमारे रिश्तों और संपर्कों में भयपूर्ण ढोंग समा जाता है, जिसे हम सभ्यता या संस्कृति तक कह डालते हैं ।’’ अपने अद्र्धांग के प्रेम से बचते हुए आराम से समलिंगी हो जाना या सुविधा से शादीशुदा होकर जीवन सुरक्षित कर लेना जीना नहीं है। उथला प्रेम अतृप्त करता है ।
स्त्री और पुरूष का बाहरी द्वंद्व और भीतर छिपी हुई अभिन्नता
‘स्त्री और पुरूष एक-दूसरे के प्रेम में पड़े बिना सुरक्षित कितने भी हो जाए, वे एक-दूसरे के साथ अपने अनुभवों को जाने और जिये बिना ‘ग्रो’ कर ही नहीं सकते । पारस्परिक द्वंद्वो में पड़े बिना वे न स्वयं को जान सकते हैं, न पा सकते हैं । वे एक-दूसरे का खोया हुआ हिस्सा है, जिसे खोजे और स्वयं में सहेजे बिना वे नपुंसक है । दुनिया की सबसे बढ़ी चुनौती है एक पुरूष का अपने तल की स्त्री को खोजना और एक स्त्री का अपने पुरूष को पा लेना ।’
वह न भी मिले तो भी यह खोज बहुत रचनात्मक और बहुत संगीतमय हो जाती है। हम सब का अवचेतन विपरित लिंग का होता है । पुरूष स्थूल शरीर, पुरूष का चेतन मन व उसका सूक्ष्म शरीर अवचेतन स्त्री का होता है । इसी तरह स्त्री देह में अवचेतन पुरूष का होता है । इसी में पुरूष के भीतर एक स्त्री और एक स्त्री के भीतर एक पुरूष अंगड़ाई लेता है ।
‘अपने प्रिय के विचारों और रूचियों को समझकर उनमे सहमंथन करना, स्वीकृति और अस्वीकृति देने का साहस रखना, सुख-दुख में साथ खड़े होना और अपनी भी रूचि-अरूचि प्रकट कर देना प्रेम और मैत्री के उच्चतर पड़ाव है । प्रेम की खोज विपरित लिंग के साथ रह कर, समझ कर, लड़ते हुए, द्वन्द्व को झेलते हुए स्वयं के भीतर अवचेतन से मिलन होता है । वही पूर्णता है । अपने को जानना व सत्य का साक्षात्कार है । जीवन से तृप्त होना है ।अपनी बंूद को सागर में मिलाते हुए स्वयं सागर होना है ।
ज्यों-ज्यों प्रेम उमड़ता है, प्रियजनों के बीच शब्द उतने नहीं रह जाते, जितनी कि पारस्परिक तरंगे ऊर्जामय हो उठती है । एक सच्चा मीत जब अचानक हमारा हाथ पकड़ता है, तो हम नवजीवन से झनझना उठते हैं । यह विपरीत धु्रवों से पूर्ण होने वाला अद्भुत सर्किट है ।’
पुरा लेख हाजिर है ।
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क्या कार्य पूरा करने हेतु ‘‘छोटा रास्ता’’ चुनना उचित है ?

जीवन में हम सब ‘‘शोर्ट कट’’ खोजते हैं । अंधी दौड़ में शीघ्र जीतने हेतु ‘‘छोटा रास्ता’’ चुनना अच्छा लगता है । Shortcutछोटे रास्ते से चल कर पाई सफलता उतनी महत्वपूर्ण नहीं है । साध्य व साधन का पवित्र होना आवश्यक है । हमें शोर्ट कट से प्राप्त वस्तु का मूल्य पता नहीं पड़ता है । उसका महत्व समझ मंे नहीं आता है । शोर्ट कट कई बार महत्वपूर्ण को भूला देता है व गैर जरूरी महत्वपूर्ण हो जाते हैं । इससे प्राथमिकताओं के चयन में गड़बड़ी होने से अव्यवस्था व अशान्ति मिलते हैं ।
छोटे रास्ते से चल कर अन्ततोगत्वा जीतने का प्रमाण नहीं मिलता है । कई बार छोटे रास्ते अव्यवस्था उपजाते हैं । बेईमानी बढ़ाते हैं, दूसरों का हक छिनते है, कामचोरी बढ़ाते हैं जो जीवन-मूल्यों के विरूद्ध है । जीवन मूल्यों को खो कर कुछ भी पाना अर्थहीन है । मात्र छोटे रास्ते से मेहनत बचती है व सरलता से तत्काल कार्य सिद्ध हो जाता है । अन्ततोगत्वा छोटा रास्ता चुनने वाले को दीर्घकाल में हमेशा हानि होती है ।
आज के रोगी वैकल्पिक चिकित्सा को दीर्घ होने के कारण उसे न चुन कर एलौपैथी को पसंद करते हैं क्योंकि उसमे तत्काल लाभ होता है । यद्यपि एैलोपैथी की दवाईयां के पाश्र्व प्रभाव हानिकारक होते हैं । हमने टी.एन. का उसी तर्ज पर जिज्ञासु का आपरेशन कराना चुना ।
तभी किसी ने लिखा है कि
रास्ता चलना स्वच्छ चाहे फेर हो, काम करना उत्तम चाहे देर हो ।
भोजन करना मां से चाहे जहर हो, सलाह लेना भाई से चाहे बैर हो ।।

स्वस्थ रहने एवं बीमारियों से बचने हेतु पानी पानी पीने के नियम

पानी सही तरीके से नहीं पीने के कारण हमे कई बीमारियां होती है । जैसे खड़े खड़ेे पानी पीने से घुटनों में दर्द एवं अन्य बीमारियां होती है । इसलिए सही तरीके से पानी पीना बहुत जरूरी है । पानी कम पीने से पथरी होने की सम्भावना है । पानी पीने के नियम निम्न प्रकार है स्वस्थ रहने के लिए जिनका ध्यान रखना जरूरी है प्रातः उठते ही तांबे के जग में रात भर रखा पानी पीना चाहिए । बिना कुल्ला किये दो से तीन गिलास पानी बैठ कर पीए । गिलास को मुंह से लगाकर धीरे-धीरे पानी पीएं । इसके बाद बाथरूम आदि करें ।
भोजनभोजन के दौरान पानी पीने से मधुमेह, पेट बड़ा होने व अपच रहने की सम्भावना है । इसलिए खाना खाने के एक-डेढ़ घंटे बाद पानी पीए । इसके बाद प्रति घंटे पानी पीए ।
भोजन करते वक्त व उसके आधा घंटा पूर्व पानी नहीं पीना चाहिए । सुखे मेवे, भारी नाश्ता, चाय व दुध के बाद जल न पीए । फल खाने के तत्काल बाद जल पीने से जुकाम हो सकता है । शारीरिक श्रम के तत्काल बाद पानी न पीए ।
पानी पीने के बाद पेशाब करें । आवश्यक हो तो पेशाब करने के बीस मिनट बाद पानी पीए ।
नहाते वक्त पानी सबसे पहले सिर पर डालें । के दौरान पानी पीने से मधुमेह, पेट बड़ा होने व अपच रहने की सम्भावना है । इसलिए खाना खाने के एक-डेढ़ घंटे बाद पानी पीए । इसके बाद प्रति घंटे पानी पीए ।
भोजन करते वक्त व उसके आधा घंटा पूर्व पानी नहीं पीना चाहिए । सुखे मेवे, भारी नाश्ता, चाय व दुध के बाद जल न पीए । फल खाने के तत्काल बाद जल पीने से जुकाम हो सकता है । शारीरिक श्रम के तत्काल बाद पानी न पीए ।
पानी पीने के बाद पेशाब करें । आवश्यक हो तो पेशाब करने के बीस मिनट बाद पानी पीए ।
नहाते वक्त पानी सबसे पहले सिर पर डालें ।

मधुमेह ( diabetes) की घरेलु चिकित्सा

  • मेथीदानाः- दरदरे पीसे हुए मेथीदाने के चुर्ण की फक्की मात्रा 20 ग्राम से 50 ग्राम सुबह-शाम खाना खाने से 15-20 मीनट पहले लेते रहने से मूत्र व खून में शक्कर की मात्रा कम हो जाती है । आवश्यकता अनुसार तीन से चार सप्ताह तक लें । गर्म प्रकृति वाले विशेष ध्यान दे । गर्म प्रकृति वाले इसे मट्ठे या छाछ के साथ ले । अनुकूल होने पर मात्रा 70 से 80 ग्राम दोनो बार की मिलाकर ले सकते हैं । हानि रहित है ।
  • जिन रोगियों को बार-बार पेशाब आना, अधिक प्यास लगना, घाव धीरे-धीरे भरना ऐसे लक्षण हो उन रोगियों को वजन घटाना चाहिये, बशर्ते अगर उनका वजन उंचाई के हिसाब से अधिक हो तो हर दस-पन्द्रह दिनों में शुगर की जांच करवाते रहे । सामान्य वजन वाले नहीं । वैसे रोगी को स्वयं ही इसका अनुभव होने लगेगा ।
  • गर्म तासीर के पदार्थ माफिक नहीं आने वाले रोगियों के लिए रात्रि में मेथीदाना भीगोकर और सुबह-शाम निथार कर उसका जल पीना अति उतम रहेगा । विशेष कर सभी रोगियों के लिए गर्मियों में भीगा हुआ मेथीदाना फेंकने के बजाय खा लेनेे से विशेष लाभ होता है ।
  • गेहुं का आटा छानने के बाद जो चोकर बच जाता है उसे 20 ग्राम लेकर उसमे पानी मिलाकर आटे की तरह गुंथ ले और उसकी पेड़े की तरह टिकिया बना ले । उस टिकिया को तवे पर भून ले और प्रातःकाल खाली पेट इसका सेवन 6 माह तक करे । शुगर से मुक्ति मिल जायेगी।
  • गेहु के आटे को भूरा होने तक लोेहे की कड़ाही में ही भूने, उसमे दो या तीन चम्मच तेल मंुगफली या सरसों तेल मिलाकर उस आटे से रोटी बनाकर ही खायें । ऐसा करने से इन्स्यूलिन की जरूरत नहीं रहेगी और न ही मधुमेह का खतरा रहेगा ।
  • गेहुं के 5 किलो आटे में आधा किलो जौ, आधा किलो चना देशी, पाव भर मेथीदाना मिलाकर उपर बताये अनुसार भूनकर खाते रहने से मधुमेह रोगी इस बीमारी से निजात पा सकता है ।
  • विशेषः- आटे मे मोयन के लिए सिर्फ-मुंगफली तेल, सरसों तेल या जैतुन का तेल ही प्रयोग में लावें । सोयाबीन, सुरजमुखी या सफोला जैसे तेल का उपयोग नहीं करें ।
  • अमरूद का एक या दो स्वच्छ किटाणु रहित पत्तों को थोड़ा कुटकर रात्रि को कांच के गिलास में (पात्र धातु का न हो) या चीनी मिट्टी के प्याले में भिगोकर सुबह खाली पेट पीने से एक माह में ही अनुकूल परिणाम नजर आयेगें । दवा की जरूरत नहीं रहेगी ।
  • जामुन की चार-पांच पत्तियां सुबह एवं शाम को खाकर चार-पांच रोज पश्चात शुगर टेस्ट करवायें । आशा से अधिक वांछित परिणाम आयेगें ।
  •  नीम की सात से आठ हरी मुलायम पत्तियां सुबह हर रोज खाली पेट चबाकर उसका रस निगल जाये ऐसा नियमित करते रहने से शुगर पर नियन्त्रण बना रहता है, एवं दस-पन्द्रह दिन तक यह प्रयोग करने के बाद आप जरूरत के मुताबिक चाय मिठी और मीठा भोजन भी ले सकते हैं । शुगर आपका कोई भी नुकसान नहीं कर सकती है ।
  • पत्तियां चबाने के पांच से दस मिनट के अन्तराल पर हल्का या पेट भर नाश्ता अवश्य लें । अन्यथा हानि होने की प्रबल संभावना रहती है ।
  • नियमित रूप से तुलसी की दो से चार पत्तियां लेते रहने से रक्त शर्करा में अवश्य ही फायदा होगा । साथ में अन्य कई बीमारियों में भी विशेष फायदा देगी । अल्सर वाले मरीजों को विशेष फायदा होगा ।
  • उपरोक्त बातों के अलावा भी अगर रोगी चाहे तो सुर्य-किरण चिकित्सा द्वारा तैयार किया हुआ पानी प्रयोग में लाकर रोगी शुगर की बीमारी से हमेशा के लिये निजात पा सकता है। । रोगी
  • को दस-बीस रूपये से अधिक धन व्यय करने की जरूरत नहीं रहेगी । सिर्फ आपकी आस्था और विश्वास की जरूरत रहेगी ।
  • विशेषः- शुगर वाला रोगी अगर कपालभाति प्राणायाम 15 मीनट एवं मण्डुकासन 7 से 8 बार करे तो शुगर नियमित हो जाती है एवं उपरोक्त किसी एक विधि को करने के बाद सोने पे सुहागा वाली बात होगी ।

जीवन विद्या के अनुसार मूल्य एवं कीमत में क्या फर्क है ?

मूल्य उपयोगिता पर आधारित होने से शाश्वत व निश्चित है । प्रत्येक इकाई में निहित मौलिकता ही मूल्य है । यह बदलता नहीं है । गेहुं की जो हमे पुष्ट करने की भूमिका है वह सदैव वही रहेगी । कीमत मुद्रा में आंकी जाती है । यह बाजार से निर्धारित होती है । इसका आधार मांग व पूर्ति है । यह रूपयों में होती है । समय-समय पर यह बदलती रहती है । गेहु का बाजार मूल्य भिन्न रहता है । एक ही समय में भी अलग-अलग जगह पर अलग-अलग होता है । पीकासो की पेन्टिंग्स की कीमत बदलती रहती है लेकिन मूल्य वही है जो उसे बनाने के समय था ।
जीवन विद्या प्रणेता  नागराज
जीवन विद्या प्रणेता नागराज
धन सम्पदा कीमत के आधार पर मापते हैं । जबकि मूल्य मापने में मुद्रा की ईकाइ कार्यकारी नहीं है । अधिमूल्यन, अवमूल्यन व निर्मूल्य द्वारा मूल्य गिनते है । जब हम किसी का अधिक मूल्य आंकते हैं तो वह अधिमूल्यन है । कम मूल्य नापना अवमूल्यन है । मूल्य नहीं जानना निमूल्यन है ।
कार का क्या मूल्य है ? अच्छी कार किसे कहते हैं ? क्या वह यन्त्र जो प्रकृति चक्र तोड़े वह अच्छा है।
प्लास्टिक प्रकृति विरोधी इसी कारण है । उसके कण टूटते नहीं है । वह विघटित नहीं होता है । अतः जिन परमाणुओं से बना है उसमे पुनः रूपान्तरित नहीं होता है । तभी तो उसके ढेर पृथ्वी पर बढ़ते जा रहे हैं । यह संतुलन को तोड़ रहा है । क्या हमे मजबूति एवं सुविधा के कारण इस चक्रके तोड़ने मंे सहयोग देना चाहिए । इसी समझ के बढ़ने पर हम प्लास्टिक का उपयोग नहीं कर पाते हैं । अर्थात प्लास्टिक का मूल्य कुछ भी नहीं है 

जीवन विद्या शिविर :स्वयं को जांचने व मापने की कला सीखी

मैने गत माह स्वराज यूनिवर्सिटी  द्वारा आयोजित  जीवन विद्या के शिविर में भाग लिया ।बाबा नागराज   द्वारा रचित जीवन विद्या शिविर के    विनिश गुप्ता   प्रबोधक थे  । मैं स्वयं क्या हुं, मेरा शरीर के साथ क्या रिश्ता है, शरीर की मांगे क्या है, परिवार किसे कहते हैं, समाज व प्रकृति से जुड़ाव मेरा कितना है व सह-अस्तित्व मंे कैसे जीना आदि मूल प्रश्नों पर मंथन करने मिला । सही समझ क्या है व इसको कैसे जीवन मंे प्रयोग लाना पर संवाद किया ।इसको मध्यस्थ दर्शन  भी कहते  है ।Tapowan, Udaipur
आधार बिन्दु
शिविर के आधार बिन्दु बहुत महत्वपूर्ण है । प्रबोधक कभी भी अपने विचार, दर्शन, ज्ञान व अनुभव नहीं थोपता है । अपनी बात को वह प्रस्ताव बताते हंै कि संभागी उसे जांचे । आपकी सहज स्वीकृति है या नहीं । अर्थात बिना यदि परन्तु के उसे मानते हैं । प्रबोधक को संभागी की सहमति नहीं चाहिए । दूसरा आधार बिन्दु शब्द पर न जाए, उसके अर्थ पर जाए । शब्द मात्र संकेतक है । अर्थात शब्दों मंे न उलझे । विपरित, दूरवर्ति या काल्पनिक अपने पूर्वाग्रह के आधार पर अर्थ न लगाए ।
इस शिविर में अन्य किसी की बात न करंे मात्र अपनी बात करें । ताकि विषयान्तर न हो व विस्तृत (डिटेलिंग) होने से बचे ।
यह स्वयं में, स्वयं की शोध की प्रक्रिया है, स्वयं को समझने एवं स्वयं के विकास की प्रक्रिया है ।हम दूसरों जैसे नही अपने जैसे बने । हम अपनी सोच-विचार अनुसार बनते जाते हैं । सोच का आधार मान्यताएं है । इन मान्यताओं को देख कर इनका परीक्षण करने की जरूरत है । स्वयं का निरीक्षण, परीक्षण कैसे करना सीखा । अभी तक जो सिखा हुआ है उसका आंकलन करने की कला सीखी ।
यह मौलिक प्रश्नों को खड़ा करती है । मुलभूत प्रश्नों के समाधान खोजती है । तत्काल कोई राहत नहीं देती है । यह वेल्यू लेब व फोरम से भिन्न है ।
यहां दिन भर अपने पर कार्य करने मिला । स्वयं की सोच व कृत्यों का अवलोकन हुआ कि मेरे भीतर क्या सोच चल रहा है । उस सोच को रोकना है । सोच के बहाव में नहीं बहना है । रूक कर देखा तो सुविधा से ही सब कुछ नहीं मिल सकता का भास हुआ । सम्बन्धों की तरफ ध्यान गया व उनका महत्व समझ में आया । अपनी भौतिक उन्नति ही विकास/सफलता नहीं है । यह साफ-साफ देखने मिला ।
अपने वैभव को प्राप्त करना है तो स्वयं को समझना होगा । ईमानदारी से जिम्मेदारी लेकर अपनी भागीदारी खोज कर ही स्वराज भोगा जा सकता है । स्वतन्त्र होने इतना तो करना ही पड़ेगा । अन्ततोगत्वा विधि, तकनीक, योग कार्य नहीं आते हैं । स्वयं का जागरण ही उपादेय है ।                                                  (to be continued….)

अस्तित्व आपके लक्ष्यों को पुरा करने का षड्यन्त्र करे !नव वर्ष की शुभकामनाएँ !

दोस्तो,
आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !Image
मेरे भीतर बैठी विराट सत्ता आपके भीतर विराजमान परम सत्ता को सर झुकाती है। आपके निकटस्थ मित्र शरीर को प्रणाम जिसके होने से आपका जीवन हैं। दुनिया के सबसे बडे सुपर कम्प्यूटर आपके मस्तिष्क को प्रणाम। उस दिल को नमन जो आपके जन्म से आज तक साथ दे रहा है। उन फेफड़ों को प्रणाम जो आज तक आपको श्वास लेने में मदद दे रहे है। अस्थि तन्त्र को प्रणाम जो आपके शरीर को आकार दिये हुए हैं। उस पाचन शक्ति को नमन जो पहले दिन से आपके भोजन को ऊर्जा में बदलते है।उस स्नायू तन्त्र को प्रणाम जो दुनिया में व्याप्त समस्त टेलिफोन जाल से सात गूना बड़ा है।अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों व प्रजनन तन्त्र को प्रणाम जो शरीर व दुनिया को सन्तुलित रखने में जिनका योगदान है।
परम सत्ता से प्रार्थना है कि नव वर्ष में आपकी सभी कामनाएँ पूरी करें।आप सबसे महत्वपूर्ण है।आप अनुपम व अद्वितीय हैं चुँकि आप ही जगत हैं।

23 दिनों की बच्ची मिनी के जज्बे को सलाम: किया किडनी दान

23 दिनों की बच्ची मिनी के जज्बे को सलाम: किया किडनी दान

अपनी जिंदगी की परवाह किये बिना किसी और की जिंदगी बचाना वाकई काफिले तारीफ है मगर जब ऐसा काम कोई 23 दिनों की जन्मी बच्ची करे तो ! है न ये हैरत में डालने वाली बात… मगर ये हुआ है।ब्रिटेन में रहने वाली 23 दिनों की बच्ची ने ऐसा कर दिखाया है।आज उसी के इस कारनामे पर पेश है देसी लुटियंस की पेशकश-“मिनी का था सबसे बड़ा दिल “
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1) दरअसल इसकी शुरुआत मिनी के जन्म से ही हो गयी थी।मिनी का जन्म अन्य बच्चों की तरह तो सामान्य हुआ मगर जन्म के कुछ ही घंटो बाद ये पता चलने लगा कि उसका जीवन बहुत कम दिनों का ही है। डॉक्टरों ने गहन जांच करके उनके माता-पिता को यह बता दिया कि मिनी का दिल ठीक तरह से विकसित नहीं हो पाया है।वो जन्म से ही अविकसित था।
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2) मिनी की सबसे बड़ी परेशानी ये थी कि उसकी आहार नली उसके पेट से ठीक तरह से नहीं जुडी थी।इसके कारण उसे कई तरह की दिक्कतें शुरू से थी।और इसका एक ही इलाज़ था वो था ऑपरेशन और उसके पेट और उसके दिल का ऑपरेशन एक साथ संभव नहीं था। उसकी उम्र को देखकर ऐसा कहना बिलकुल सही था।
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3)सबसे आश्चर्यजनक पहलु ये है कि जब उनके माता-पिता को यह बता दिया गया कि अब उनकी बेटी का बच पाना संभव नहीं है तो उसके माँ-बाप उस फैसले को सुनकर दुखी नहीं हुए।दुखी होने की बजाय उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया जो वाकई हैरान करने वाला था।
उनका कहना यही था कि क्या हुआ जो मेरी बेटी अब इस दुनिया में नहीं रह सकती…उसकी किडनी तो जरूर किसी दूसरे को जीवन दे सकती है।जीवन का तौफा सबसे बड़ा तौफा होता है।उनके माँ-बाप के यही शब्द थे।उनके माँ-बाप ने यह फैसला लिया कि वो अपनी 23 दिन के बेटी की किडनी दान करेंगे।
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4)इसी के साथ ही ब्रिटेन में 23 दिन की बच्ची आज इस देश की सबसे कम उम्र की किडनी दान करने वाली बन चुकी है। आज मिनी दुर्भाग्य से इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसने दुनिया को अलविदा कहते हुए कुछ ऐसा कर दिखाया है कि वो सबके दिलों में हमेशा के लिए बस गयी है।
अब उसके कारनामे को सब हमेशा याद रखेंगे।मिनी का यह कारनामा वैसे हम सबके लिए एक प्रेरणा भी है ! प्रेरणा एक बेमिसाल जिंदादिली की ! प्रेरणा समर्पण की ! हम सबको उसके और उसके परिवार के जज्बे को सलाम करना चाहिए।
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क्योंकि हर एक फ्रेंड कमीना होता है


क्योंकि हर एक फ्रेंड कमीना होता है

जानियें दोस्ती की दस परिभाषाएं ,जो आपमें दोस्तों के प्रति नया अहसास जगा सकती है

1.दोस्त वो मौलवी है जो चाँद का दीदार तो ख़ुद करता है मगर ईद हम बकरों की मन जाती है !!
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2.दोस्त सावन की बारिश की तरह होते है ,जब भी जिंदगी में बरसते है तो बहारें जरुर आती है !!
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3.दोस्त उस स्वपोषित बला का नाम है जो शाम को गाली देकर सुलाए और सुबह लात मारकर क्लास जाने के लिए जगाये !!
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4.दोस्त फ्री हिट बाल की तरह है जिस पर सिर्फ रन मिलते है ,विकेट नहीं गिरता अर्थात शत प्रतिशत शुद्ध मुनाफ़ा देने वाले रिश्ते का नाम है दोस्ती !!
England v South Africa: 3rd NatWest Series ODI

5.दोस्त हिन्दुस्तान में पाया जाने वाला सबसे अधिक सेक्युलर प्राणी है जो अपने दोस्त की सलामती की दुवा मांगने मंदिर भी जाता है और मस्जिद भी जाता है !!
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6.सच्चा दोस्त वही है जो आपको पहले तो तिगड़ी फंसाकर गिराए ,और आपको चोट लगने पर अस्पताल भी पहुंचाए !!
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7.दोस्त वो कमीना शख्स है जो शराब भी तुमको इस एहसान के साथ पिलायें कि मानों समुद्र मंथन से प्राप्त हुए अमृत तुम्हे पिला रहा है !!
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8.दोस्त वो भोला प्राणी है जिसने भले ही प्रेम की ए.बी.सी.डी. ना आती हो मगर वो सलाह ,मशविरा देने के मामले में किसी लव गुरु से कम नहीं होता है !!
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9.जो लड़की आपके दिल के ताले में चाभी फंसा देती है ,आपका दोस्त उस लड़की को भाभी की नज़र से ही देखता है ,ना कि पापी की नज़र से !!
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10.जो आपकी हंसी के ठहाकों में छिपी गम की परक्षाई को पढ़ ले ,और पूंछे साले क्या बात है ? सच्चा दोस्त वही है जिसके साथ आप दिल खोलकर रो सकते है !!
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“भले ही ईमली सी खट्टी हो पर चबाकर खाई जाए
दोस्ती वही जो हंसकर या फंसकर निभाई जाए !!”

मेहनत और संघर्ष का असली नाम-दसरथ मांझी


मेहनत और संघर्ष का असली नाम-दसरथ मांझी

कर्म ही पूजा है ये कहावत तो आप सब ने खूब सुनी होगी मगर इसका जीता-जागता उदाहरण आपने बहुत कम ही देखा होगा।लोग काम ठान तो लेते है आज मगर काम को अक्सर पूरा नहीं कर पाते।सच्चे इरादों और कठिन परिश्रम से ही हर काम पूरा हो पाता है।
आज देसी लुटियंस आपको एक ऐसी शख्सियत से रूबरू करायेगा जो असल में मेहनत और संघर्ष का असली नाम है।
देसी लुटियंस पेश करते है-मेहनत और संघर्ष का असली नाम-दसरथ मांझी

मेहनत…संघर्ष…कभी ना हारने का इरादा…बेजोड़ लगन…अथक निश्चिंतता… और न जाने ऐसे ही कितने शब्दों के पर्याय है दशरथ मांझी !
दशरथ मांझी सही मायनो में एक ऐसा नाम जिसे शायद ही आज की तारीख में कोई ना जानता हो | इनका वास्ता बिहार राज्य के गया जिले के गेहलौर गावं से है | इनका जन्म 1934 में हुआ | इनकी परिश्रम की कहानी दूसरों से बहुत अलग है |
इनके बारे में सब लोगों को तब पता चला जब ये पहाड़ के बीच में से सड़क बनाने के अपने काम के लिए लोकप्रिय हुए | इन्होंने 22 साल की मेहनत सिर्फ एक काम के लिए की- पहाड़ों के बीच से सड़क बनाने के लिए | वो भी छैनी और हथोड़े मात्र से ! और ये सब इसलिए क्योंकि एक हादसे ने इन्हे झकझोर कर रख दिया था | 
ये हादसा इनकी जिंदगी का मुख्य पड़ाव था | ये वो वक़्त था जब इनकी धर्मपत्नी इन्हे अकेला छोड़कर इस दुनिया से चली गयी थी और वो भी कैसे ? तो सिर्फ इस वजह से क्योंकि उनके गावं के आस-पास कोई अस्पताल मौजूद नहीं था |ये विडंबना का वाकई एक कड़वा उदाहरण था | इस घटना के बाद कई दिन मांझी अलग मानसिक स्थिति में रहे | वो दिन रात इसी घटना के बारे में सोचते…

 इसके बाद इन्होने इस तकलीफ को दूर करने का संकल्प अपने मन में कायम किया | अपने मन में इन्होने इस काम के लिए एक अमिट हिम्मत पैदा की | उन्होंने ये तय किया कि अब उनके गावं वालों को स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कतें नहीं होनी चाहियें | इन्होने इस दिक्कत को दूर करने के लिए सड़क बनाने का निर्णय लिया | ये काम भले उन्होंने एक छोटे स्तर पर शुरू किया मगर उनका इरादा बहुत पक्का था |इस काम के तहत उन्होंने अपनी 22 सालों की दिन रात की मेहनत से अपने क्षेत्र अतरी से वजीरगंज की दुरी 55 किलोमीटर से सीधे 15 किलोमीटर कर डाली | उन्होंने यह काम 1960 से लेकर 1982 के बीच किया | 40 किलोमीटर की दुरी अकेले ही 22 सालों में तय की | वो दिन रात सिर्फ इसी काम में लगे रहे |
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पत्नी से बिछड़ने के गम के बारे में सब लोग जानते है मगर इनकी पत्नी ने इन्हे गम की बजाय इतनी ताकत दी कि इन्होने कभी ना हार मानते हुए 22 सालों की अथक मेहनत के बाद ही सही वो कर दिखाया जो कोई कर नहीं पाता | सबसे ख़ास बात ये कि इन्होने ये सबकुछ अकेले किया | इनके संघर्षों के पथ पर ये अकेले ही डटे रहे |सचमुच ये दिखाता है इनकी जिद्द और इनकी बानगी का एक नमूना | ये व्यक्तिव हर मायने में आज एक प्रेरणा से कम नहीं है | इस व्यक्तिव ने लोगों को मेहनत की महत्वता से रूबरू करवाया |उन्होंने मेहनतकश लोगों को संघर्ष की ख़ुशी से रूबरू कराया | उन्होंने ये बताया की कैसें हर काम को हस-खेलकर पूरी लगन के साथ किया जा सकता है |

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वो जरुर एक गरीब और छोटे घर से थे मगर उन्होंने कभी हार नहीं मानी | यही कारण है कि वो कभी ना हार मानने की शिक्षा हर इंसान के मन में पैदा करते है |ये व्यक्तित्व एक प्रेरणा है संघर्ष के पथ पर चलने वालों के लिए ! ये प्रेरणा है हमारे भारत के आज और कल को चमकाने वाले मजदूर और किसान भाइयों के लिए ! देश का हर मज़दूर और किसान आज इन्हे अपना आदर्श मानता है |

तसलीमा नसरीन : कलम की वो सिपाही जिसने हार नहीं मानी


तसलीमा नसरीन : कलम की वो सिपाही जिसने हार नहीं मानी

आधुनिकता के उस दौर में, जहाँ पत्रकार ओहदों के लिए अपनी कलम को, अपने जमीर तक को गिरवीं रख देते है वही तसलीमा एक ऐसी साहसिक महिला, ऐसी लेखिका के रूप में उभर कर सामने आई है जिन्होंने अपने साहित्य से मजहब के नाम पर खड़ी की गयी कट्टरपंथी मानसिकता से जमकर लोहा लिया | सही अर्थों में धर्मनिरपेक्षता की सेनानी जिसे भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली से सहज रूप से प्यार है जो भारत की महान सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करने वाली एक बांग्लादेशी महिला है |
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आप तसलीमा की पूरी आप बीती जानने के बाद या तो उसे बहुत बहादुर कहेंगे या फिर बहुत बेवकूफ, क्योंकि तसलीमा ने उन जानबुझकर उन कट्टरपंथी मुसलमानों की दकियानूसी का विरोध किया, जो कभी भी किसी भी वक़्त तसलीमा को जान से मार सकते है |
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तसलीमा को सच बोलने की कीमत चुकानी पड़ी अपने देश,अपने लोगों को छोड़ने के लिए उसे मजबूर कर दिया गया | क्योंकि बांग्लादेश की लोकतांत्रिक सरकार ने तसलीमा को सुरक्षा मुहैया करा पाने असमर्थता व्यक्त की,जिसके बाद तसलीमा को अपना देश छोड़ना पड़ा | लेकिन मजहबी कट्टरपंथ के खिलाफ़ तसलीमा ने बग़ावत का जो बिगुल फूंका था उसकी आवाज दिनोंदिन बुलंद होती जा रही है | बांग्लादेश में सामजिक उत्थान के कार्य प्रगति पर है | तसलीमा के समर्थक मजहबी कट्टरपंथ का पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे है इस बार तसलीमा के नक्शेकदम पर चलकर 5 ब्लागर कट्टरपंथियों के शिकार बने | लेकिन राष्ट्रप्रेमियों ने अभी तक हार नहीं मानी है |
तसलीमा की पुस्तक “लज्जा” से दुनिया ने जाना कि कैसे मजहब के नाम पर बांग्लादेश में कत्लेआम हो रहा है |
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केवल तसलीमा जैसे बुलंद इरादों वाले लोग ही कट्टरपंथियों को रोक सकते है जो बांग्लादेश को पाकिस्तान, सीरिया,ईराक और अफगानिस्तान में तब्दील कर देना चाहते है मजहबी कट्टरपंथ को फैलाकर |
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तसलीमा भारत में अस्थायी तौर पर रहे रही है | तसलीमा ने बहुत प्रयास किये भारत की स्थायी नागरिकता प्राप्त करने के लिए, लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने उनकी याचिका नामंजूर कर दी क्योंकि पूर्ववर्ती सरकार तो चोरी छिपे भारतीय सीमा में घुसने वाले बांग्लादेशियों के वोटर आई.डी. कार्ड और आधार कार्ड बनाने में व्यस्त थी जिससे कि चुनाव में उनको इसका लाभ मिल सके |
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भारत सरकार द्वारा स्थायी वीजा न दिए जाने के कारण तसलीमा काफ़ी आहत थी और शायद भारत छोड़कर ब्रिटेन जाने का मन बना ही रही थी कि तभी 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रवादियों की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी ,जिससे तसलीमा को अपने आने वाले अच्छे दिनों की आहट मिलने लगी |
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भारत के राष्ट्रवादियों ने हमेशा हर कदम पर तसलीमा का समर्थन किया है क्योंकि तसलीमा भी कहीं न कहीं राष्ट्रवाद की प्रबल समर्थक है | भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के हस्तक्षेप के बाद तसलीमा को 1 साल का अस्थायी वीजा मिला है | तसलीमा प्रयास कर रही है और साथ ही ये आशा भी कि केंद्र की राष्ट्रवादी सरकार उनके साथ न्याय करेगी |
क्योंकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ,पश्चिम बंगाल के वामपंथियों के आगे घुटने टेंक कर तसलीमा को बमुश्किल अस्थाती वीज़ा जारी करती आई है | तसलीमा पश्चिम बंगाल को अपना दूसरा घर मानती है वो कुछ दिन कोलकाता में रही भी ,लेकिन पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने तसलीमा का समर्थन नहीं किया | वामपंथी जहाँ एक तरफ मजहब को अफीम बोलते है और खुद को स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का झंडाबरदार और खुद को धर्म निरपेक्षता का ठेकेदार कहते है | आखिर वही वामपंथियों की सरकार तसलीमा के समर्थन में आगे क्यों नहीं आयीं ,सिर्फ मुसलमानों के वोट बैंक के हाथ से निकल जाने के कारण | वाह क्या सेक्युलर मानसिकता है वामपंथियों की |
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2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने तसलीमा का अस्थायी वीजा समाप्त कर दिया और तर्क दिया कि भारत में उनकी जान सुरक्षित नहीं है ? क्या भारत जैसा शक्तिशाली देश एक महिला की हिफाजत नहीं कर सकता या फिर मुसलमानों के वोट बैंक को बचाए रखने के लिए कांग्रेस का ये चुनावी ट्रंप कार्ड था | अत: निराश होकर भारत से निकली गयी तसलीमा फ़्रांस चली गयी |
अमेरिका यूरोप के तमाम देश तसलीमा को सुरक्षा और स्थायी नागरिकता देने के लिए तैयार है लेकिन तसलीमा को भारत की संस्कृति से सभ्यता से प्यार है जैसा अन्य राष्ट्रवादियों को होता है | वो अपनी जड़ों से दूर नहीं जाना चाहती |आखिर कब तक तसलीमा को वनवास काटना पड़ेगा ? कब तक झेलनी पड़ेगी सच बोलने की सजा | कब तक ?

मेरा कटा पांव मेरी कमजोरी था,उसे मैने अपनी ताकत बनाया एक बार पढना जरुर यह एक सच्चि घटना है


मेरा कटा पांव मेरी कमजोरी था,उसे मैने अपनी ताकत बनाया: अरुणिमा सिन्हा

कहते हैं,  हिम्मत-ए-मर्दा-मदद-ए-खुदा, जो हिम्मत करता है भगवान भी उसी का साथ देता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में जो अपने लक्ष्य से विचलित नही होता सफलता उसके कदम चूमती है। कृत्रिम पैर के सहारे हिमालय की सबसे ऊॅंची चोटी ‘माउंट एवरेस्ट’ फतह कर उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर का नाम रोशन करने वाली अरुणिमा सिन्हा कहती हैं, मेरा कटा पांव मेरी कमजोरी था। उसे मैने अपनी ताकत बनाया।
Indian mountaineer Arunima Sinha, who had her leg amputated below the left knee two years ago gestures during a press conference in Kathmandu on May 28, 2013. Twenty-six year old Sinha from the northern state of Uttar Pradesh, who lost her leg after she was thrown from a moving train two years ago, became the first female amputee to climb Everest on May 21. AFP PHOTO/ Prakash MATHEMA        (Photo credit should read PRAKASH MATHEMA/AFP/Getty Images)

बास्केट बॉल खिलाड़ी अरुणिमा को 11 अप्रैल 2011 की वह काली रात आज भी याद आती है, जब पद्मावत एक्सप्रेस से वह दिल्ली जा रही थीं। बरेली के पास कुछ अज्ञात बदमाशों ने उनके डिब्बे में प्रवेश किया। अरुणिमा को अकेला पाकर वे उनकी चेन छीनने लगे। छीना-झपटी के बीच बदमाशों ने उन्हें ट्रेन से नीचे फेक दिया। जिससे उनका बांया पैर कट गया। लगभग सात घण्टों तक वे बेहोशी की हालत में तड़पती रहीं। इस दौरान दर्जनों ट्रेने गुज़र गईं।
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सुबह टहलने निकले कुछ लोगों ने जब पटरी के किनारे अरुणिमा को बेहोशी की हालत में पाया तो तुरंत अस्पताल पहुंचाया। जब मीडिया सक्रिय हुआ तो अरुणिमा को दिल्‍ली के एम्‍स में भर्ती कराया गया। एम्स में इलाज के दौरान उनका बाया पैर काट दिया गया। तब लगा बास्‍केट बॉल की राष्‍ट्रीय स्‍तर की खिलाड़ी अरुणिमा अब जीवन में कुछ नहीं कर पायेगी। लेकिन उन्होंने जि़न्दगी से हार नहीं मानी। अरुणिमा की आंखों से आंसू निकले, लेकिन उन आंसुओं ने उन्‍हें कमजोर करने के बजाये साहस प्रदान किया और देखते ही देखते अरुणिमा ने दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवरेस्‍ट पर चढ़ने की ठान ली।
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अरुणिमा ने ट्रेन पकड़ी और सीधे जमशेदपुर पहुंच गईं। वहां उन्‍होंने एवरेस्ट फतह कर चुकी बछंद्री पाल से मुलाकात की। फिर तो मानो उनके पर से लग गये। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद 31 मार्च को उनका मिशन एवरेस्ट शुरु हुआ। 52 दिनों की इस चढ़ाई में 21 मई को माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा फहराकर वे विश्व की पहली विकलांग पर्वतारोही बन गईं।
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अरुणिमा का कहना है विकलांगता व्यक्ति की सोच में होती है। हर किसी के जीवन में पहाड़ से ऊंची कठनाइयां आती हैं, जिस दिन वह अपनी कमजोरियों को ताकत बनाना शुरू करेगा हर ऊॅंचाई बौनी हो जायेगी। नीचे दिये गए विडियो में अरुणिमा ने अपनी आपबीती और अपने हिम्मत भरे फैसले और रस्तों के बारे मे बताया है। मै जब जब ये विडियो देखता हु एक अजीब सी शक्ति आ जाती है मेरे अंदर जो की कुछ भी कर गुजरने मे सक्षम है। जब इतनी मुश्किलों के बावजूद अरुणिमा इतना कुछ कर सकती है तो हम तो पूरे भले चंगे हैं फिर भी अपने कम्फर्ट ज़ोन के बाहर नही आना चहतें।

बार बार गिर कर भी मकड़ी,
मँजिल की चाहत ना खोई थी,
इस तथ्य को ही जान कर,
गौरी ने पृथ्वी राज पर जीत बोई थी।
अगर वह थक कर हार जाता हतोत्साह में,
तो कहाँ मिल पाती जीत उसे जहाँ में।
इन बातों को ही दिल में रख जज्बा रखो,
अपने विश्वास को हर वक्त जवाँ रखो।
बता दो दुनिया को है जीतना,
अधूरा ना रहे जीवन का कोई सपना।
करो तुम खुद पे भरोसा इतना,
कभी भी झुकाना पड़े ना सर अपना।

रिश्तों की अहमियत अपने दोस्तो को बताये

रिश्तों की अहमियत

हम लोग जिंदगी में अक्सर एक दूसरे से यही सवाल पूछे हुए अक्सर पाये जाते है कि आखिर जिंदगी में रिश्तों की क्या एहमियत होती है !आखिर वो कौन सी कड़ी होती है रिस्तों में जो दो लोगों को एक दूसरे से जोड़े रहती है !दरअसल रिश्तें जिंदगी की वो सच्चाई है जो हमें हर पल इस बात का एहसास कराते  है की कोई है जो हर सुख दुःख में हमारे पास है


इन रिश्तों को अक्सर कई लोग परिभाषाओं में बाँधने की कोशिश करते हैं मगर रिश्ते तो असल में एक एहसास है जिसकी न तो कोई बोली है न ही कोई भाषा !
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हम रिश्तों की एहमियत को इस तरह भी समझ सकते है कि इस जहां में जब भी कोई नन्ही सी जान कदम रखती है तो उसकी सबसे पहली मुलाकात होती है इस दुनिया के सबसे हसीं और पाक रिश्ते से यानि ममता के रिश्ते से !
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ये रिश्ता सभी रिश्तों में सबसे ख़ास माना जाता है और ये रिश्ता ख़ास होता भी है क्योंकि इस निश्ते में निश्वार्थता होती है । ये रिश्ता हमें आगे चलकर बस खुशियाँ ही प्रदान करता है और हमें नए रिश्तों से बांधता भी है।
मगर ये जिंदगी हमें सिर्फ खुशियाँ ही नहीं देता ,बल्कि इस ज़िन्दगी में दुखों की भी दस्तक कभी होती है ,इसलिए ऐसा कहा जाता है कि  जीना इसी का नाम है आज सुबह तो कल शाम है और इन दो पहरों में खूबसूरती तलाशना ही आपका काम है !
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वैसे जिंदगी में इन दो पहरों की खूबसूरती को जब हम तलाशते है तब हमारी मुलाकात होती है और भी कई रिश्तों से। वो रिश्ते होतें हैं दोस्ती ,ईमानदारी और समझदारी के रिश्ते !
जो इंसान इन सभी रिश्तों की एहमियत को समझ लेते हैं ,उनका शायद ही कभी दुखों से पाला है । दरअसल ये सारे रिश्ते इंसान को हर मोड़ पर बांधे रखते है ,उनका विश्वास कभी हिलने नहीं देते !
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हालाँकि हकीकत ये भी है कि आज लोग जिंदगी को सुलझाने की जंग में  इतना उलझ गए है कि  वो खुद से खुद के रिश्ते को ही भूल गए हैं ।दरअसल हम इंसानियत के रिश्ते को भूलते जा रहे हैं ,जो की हर रिश्ते का आधार है
इस इंसानियत के रिश्ते को भूलने का कारन ये है कि हमने आपने आप को ही पहचानने से इंकार कर दिया है ।आज रिश्तों की इस भीड़ में हम महज कुछ मतलबी ढांचों  के रूप में ही नज़र आते है बस !
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इसीलिए ऐसा कहा जाता है की रौशनी के इस अँधेरे में इतना मत खो जाना दोस्त की चाह कर भी जीवन में किसी सच्चे रिश्ते से मुलाकात न कर पाओ !अक्सर कच्ची डोरें ही रिश्तों को तोड़ती है|
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निष्कर्ष -रिश्तों की एहमियत आज इसलिए भी समझना जरुरी है क्यूंकि दुनिया की डगर आगे और भी मुश्किल है हम  सबके लिए!अगर हम अब भी नहीं सम्भले तो शायद ज्यादा देर हो जाएगी।

मौत तो सच्चाई है जिंदगी की


मौत तो सच्चाई है जिंदगी की, इससे कहा कोई बच पाया है
जिया है जो औरो  के लिए , उसने ही अपनी जिंदगी का एहसान सच में चुकाया है …
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