Monday, 4 January 2016

तसलीमा नसरीन : कलम की वो सिपाही जिसने हार नहीं मानी


तसलीमा नसरीन : कलम की वो सिपाही जिसने हार नहीं मानी

आधुनिकता के उस दौर में, जहाँ पत्रकार ओहदों के लिए अपनी कलम को, अपने जमीर तक को गिरवीं रख देते है वही तसलीमा एक ऐसी साहसिक महिला, ऐसी लेखिका के रूप में उभर कर सामने आई है जिन्होंने अपने साहित्य से मजहब के नाम पर खड़ी की गयी कट्टरपंथी मानसिकता से जमकर लोहा लिया | सही अर्थों में धर्मनिरपेक्षता की सेनानी जिसे भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली से सहज रूप से प्यार है जो भारत की महान सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करने वाली एक बांग्लादेशी महिला है |
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आप तसलीमा की पूरी आप बीती जानने के बाद या तो उसे बहुत बहादुर कहेंगे या फिर बहुत बेवकूफ, क्योंकि तसलीमा ने उन जानबुझकर उन कट्टरपंथी मुसलमानों की दकियानूसी का विरोध किया, जो कभी भी किसी भी वक़्त तसलीमा को जान से मार सकते है |
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तसलीमा को सच बोलने की कीमत चुकानी पड़ी अपने देश,अपने लोगों को छोड़ने के लिए उसे मजबूर कर दिया गया | क्योंकि बांग्लादेश की लोकतांत्रिक सरकार ने तसलीमा को सुरक्षा मुहैया करा पाने असमर्थता व्यक्त की,जिसके बाद तसलीमा को अपना देश छोड़ना पड़ा | लेकिन मजहबी कट्टरपंथ के खिलाफ़ तसलीमा ने बग़ावत का जो बिगुल फूंका था उसकी आवाज दिनोंदिन बुलंद होती जा रही है | बांग्लादेश में सामजिक उत्थान के कार्य प्रगति पर है | तसलीमा के समर्थक मजहबी कट्टरपंथ का पुरजोर तरीके से विरोध कर रहे है इस बार तसलीमा के नक्शेकदम पर चलकर 5 ब्लागर कट्टरपंथियों के शिकार बने | लेकिन राष्ट्रप्रेमियों ने अभी तक हार नहीं मानी है |
तसलीमा की पुस्तक “लज्जा” से दुनिया ने जाना कि कैसे मजहब के नाम पर बांग्लादेश में कत्लेआम हो रहा है |
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केवल तसलीमा जैसे बुलंद इरादों वाले लोग ही कट्टरपंथियों को रोक सकते है जो बांग्लादेश को पाकिस्तान, सीरिया,ईराक और अफगानिस्तान में तब्दील कर देना चाहते है मजहबी कट्टरपंथ को फैलाकर |
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तसलीमा भारत में अस्थायी तौर पर रहे रही है | तसलीमा ने बहुत प्रयास किये भारत की स्थायी नागरिकता प्राप्त करने के लिए, लेकिन पूर्ववर्ती सरकारों ने उनकी याचिका नामंजूर कर दी क्योंकि पूर्ववर्ती सरकार तो चोरी छिपे भारतीय सीमा में घुसने वाले बांग्लादेशियों के वोटर आई.डी. कार्ड और आधार कार्ड बनाने में व्यस्त थी जिससे कि चुनाव में उनको इसका लाभ मिल सके |
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भारत सरकार द्वारा स्थायी वीजा न दिए जाने के कारण तसलीमा काफ़ी आहत थी और शायद भारत छोड़कर ब्रिटेन जाने का मन बना ही रही थी कि तभी 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में राष्ट्रवादियों की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी ,जिससे तसलीमा को अपने आने वाले अच्छे दिनों की आहट मिलने लगी |
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भारत के राष्ट्रवादियों ने हमेशा हर कदम पर तसलीमा का समर्थन किया है क्योंकि तसलीमा भी कहीं न कहीं राष्ट्रवाद की प्रबल समर्थक है | भारत के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के हस्तक्षेप के बाद तसलीमा को 1 साल का अस्थायी वीजा मिला है | तसलीमा प्रयास कर रही है और साथ ही ये आशा भी कि केंद्र की राष्ट्रवादी सरकार उनके साथ न्याय करेगी |
क्योंकि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ,पश्चिम बंगाल के वामपंथियों के आगे घुटने टेंक कर तसलीमा को बमुश्किल अस्थाती वीज़ा जारी करती आई है | तसलीमा पश्चिम बंगाल को अपना दूसरा घर मानती है वो कुछ दिन कोलकाता में रही भी ,लेकिन पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने तसलीमा का समर्थन नहीं किया | वामपंथी जहाँ एक तरफ मजहब को अफीम बोलते है और खुद को स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का झंडाबरदार और खुद को धर्म निरपेक्षता का ठेकेदार कहते है | आखिर वही वामपंथियों की सरकार तसलीमा के समर्थन में आगे क्यों नहीं आयीं ,सिर्फ मुसलमानों के वोट बैंक के हाथ से निकल जाने के कारण | वाह क्या सेक्युलर मानसिकता है वामपंथियों की |
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2009 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ने तसलीमा का अस्थायी वीजा समाप्त कर दिया और तर्क दिया कि भारत में उनकी जान सुरक्षित नहीं है ? क्या भारत जैसा शक्तिशाली देश एक महिला की हिफाजत नहीं कर सकता या फिर मुसलमानों के वोट बैंक को बचाए रखने के लिए कांग्रेस का ये चुनावी ट्रंप कार्ड था | अत: निराश होकर भारत से निकली गयी तसलीमा फ़्रांस चली गयी |
अमेरिका यूरोप के तमाम देश तसलीमा को सुरक्षा और स्थायी नागरिकता देने के लिए तैयार है लेकिन तसलीमा को भारत की संस्कृति से सभ्यता से प्यार है जैसा अन्य राष्ट्रवादियों को होता है | वो अपनी जड़ों से दूर नहीं जाना चाहती |आखिर कब तक तसलीमा को वनवास काटना पड़ेगा ? कब तक झेलनी पड़ेगी सच बोलने की सजा | कब तक ?

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