Monday, 6 June 2016

माँ तो माँ है - I LOVE MOM

 


पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा
रही थी और पति बार बार उसको अपनी हद में
रहने की कह रहा था
लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले
रही थी व् जोर जोर से चीख चीखकर कह रही
थी कि
"उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी और तुम्हारे
और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया
अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।।
बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो
उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे
मारा
अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी ।
पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ
वह घर छोड़कर जाने लगी और जाते जाते पति
से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर
इतना विश्वास क्यूं है..??
तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब को
सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो
उसका मन भर आया पति ने पत्नी को बताया
कि
"जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए
मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो
कमा पाती थी उससे एक वक्त का खाना
आता था
मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और
खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और
कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है
बेटा तू खा ले
मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह देता था
कि मां मेरा पेट भर गया है मुझे और नही
खाना है
मां ने मुझे मेरी झूठी आधी रोटी खाकर मुझे
पाला पोसा और बड़ा किया है
आज मैं दो रोटी कमाने लायक हो गया हूं
लेकिन यह कैसे भूल सकता हूं कि मां ने उम्र के
उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है,
वह मां आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी अंगूठी
की भूखी होगी ....
यह मैं सोच भी नही सकता
तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो
मैंने तो मां की तपस्या को पिछले पच्चीस
वर्षों से देखा है...
यह सुनकर मां की आंखों से छलक उठे वह समझ
नही पा रही थी कि बेटा उसकी आधी
रोटी का कर्ज चुका रहा है या वह बेटे की
आधी रोटी का कर्ज...


मेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया
भूखी रह भरे पेट का बहाना बना लिया...
सिर पे उठा के बोझा जब थक गई थी वो
इक घूंट पानी पीके अपना ग़म दबा लिया...
दिन सारा की थी मेहनत पर कुछ नहीं मिला
इस दर्द को ही अपना मुकद्दर बना लिया...
फटे हुए कपड़ों को सीं सींकर है पहनती
ग़मों को फिर आँखों में अपनी छिपा लिया...
कब से अकेली जी रही ख़ुद ही के वो सहारे
उसने था तन्हाई को अपना बना लिया...
पता था उसे आज भी आया नहीं बापू
तो डाकिया से फिर पुराना ख़त पढ़ा लिया...
अगर इस माँ का अब इक आंसू निकल गया
तो मान लेना तुमने अपना सब गवां दिया...
 



पोस्ट - द वेबजोन साइबर 




परिवार





परिवार

पत्नी बार बार मां पर इल्जाम लगाए जा
रही थी और पति बार बार उसको अपनी हद में
रहने की कह रहा था
लेकिन पत्नी चुप होने का नाम ही नही ले
रही थी व् जोर जोर से चीख चीखकर कह रही
थी कि
"उसने अंगूठी टेबल पर ही रखी थी और तुम्हारे
और मेरे अलावा इस कमरें मे कोई नही आया
अंगूठी हो ना हो मां जी ने ही उठाई है।।
बात जब पति की बर्दाश्त के बाहर हो गई तो
उसने पत्नी के गाल पर एक जोरदार तमाचा दे
मारा
अभी तीन महीने पहले ही तो शादी हुई थी ।
पत्नी से तमाचा सहन नही हुआ
वह घर छोड़कर जाने लगी और जाते जाते पति
से एक सवाल पूछा कि तुमको अपनी मां पर
इतना विश्वास क्यूं है..??
तब पति ने जो जवाब दिया उस जवाब को
सुनकर दरवाजे के पीछे खड़ी मां ने सुना तो
उसका मन भर आया पति ने पत्नी को बताया
कि
"जब वह छोटा था तब उसके पिताजी गुजर गए
मां मोहल्ले के घरों मे झाडू पोछा लगाकर जो
कमा पाती थी उससे एक वक्त का खाना
आता था
मां एक थाली में मुझे परोसा देती थी और
खाली डिब्बे को ढककर रख देती थी और
कहती थी मेरी रोटियां इस डिब्बे में है
बेटा तू खा ले
मैं भी हमेशा आधी रोटी खाकर कह देता था
कि मां मेरा पेट भर गया है मुझे और नही
खाना है
मां ने मुझे मेरी झूठी आधी रोटी खाकर मुझे
पाला पोसा और बड़ा किया है
आज मैं दो रोटी कमाने लायक हो गया हूं
लेकिन यह कैसे भूल सकता हूं कि मां ने उम्र के
उस पड़ाव पर अपनी इच्छाओं को मारा है,
वह मां आज उम्र के इस पड़ाव पर किसी अंगूठी
की भूखी होगी ....
यह मैं सोच भी नही सकता
तुम तो तीन महीने से मेरे साथ हो
मैंने तो मां की तपस्या को पिछले पच्चीस
वर्षों से देखा है...
यह सुनकर मां की आंखों से छलक उठे वह समझ
नही पा रही थी कि बेटा उसकी आधी
रोटी का कर्ज चुका रहा है या वह बेटे की
आधी रोटी का कर्ज...

मेरी माँ ने झूठ बोल के आंसू छिपा लिया
भूखी रह भरे पेट का बहाना बना लिया...
सिर पे उठा के बोझा जब थक गई थी वो
इक घूंट पानी पीके अपना ग़म दबा लिया...
दिन सारा की थी मेहनत पर कुछ नहीं मिला
इस दर्द को ही अपना मुकद्दर बना लिया...
फटे हुए कपड़ों को सीं सींकर है पहनती
ग़मों को फिर आँखों में अपनी छिपा लिया...
कब से अकेली जी रही ख़ुद ही के वो सहारे
उसने था तन्हाई को अपना बना लिया...
पता था उसे आज भी आया नहीं बापू
तो डाकिया से फिर पुराना ख़त पढ़ा लिया...
अगर इस माँ का अब इक आंसू निकल गया
तो मान लेना तुमने अपना सब गवां दिया...

जिंदगी में आशाये जगायेंगे अपने , सोये हुये सपनो को बनायेंगे अपने !
छा जाएंगे सितारा बनके एक दिन , एक अलग दुनिया बनायेंगे अपने !!

प्रेम और सहयोग का नाम है परिवार



प्रेम और सहयोग का नाम है परिवार




पारिवारिक सदस्यों के त्याग, सहयोग, स्वच्छता, प्रेम, संतुष्टि व व्यसनमुक्ति से ही परिवार संयुक्त और समृद्घिशाली बनता है। वे सौभाग्यशाली हैं जो संयुक्त परिवार में रह रहे हैं तथा जिन्हें माता -पिता का सान्निध्य प्राप्त हो रहा है। विश्व बंधुत्व की बात करने वालों को पहले अपने परिवार में बंधुत्व बनाए रखने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। आज छोटी-छोटी बातों को लेकर परिवार टूट रहे हैं। हम अधिकारों की बजाए एक-दूसरे के हितों का ध्यान रखेंगे, तभी हमारे परिवार खुशहाल और सुदृ़ढ़ होंगे।

एक माता-पिता अपने पाँच-पाँच बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करके योग्य बना देते हैं जबकि पाँच-पाँच बच्चे बु़ढ़ापे में अपने एक माता-पिता को संभालने से कतराते हैं। आज हम जितने बूढ़े दादा-दादी के प्रति लापरवाह हैं यदि हमारे बचपन में वे हमारे प्रति इतने ही लापरवाह होते तो हमारी क्या दुर्गति हो गई होती। इस बात को युवा पीढ़ी को अच्छी तरह ध्यान रखना चाहिए।

परिवार में ब्याह कर आई नई बहू को चाहिए कि जितने उम्र का पति उसे मिला है कम से कम उतने साल तो सास-ससुर का फर्ज मानकर उन्हें निभा देना चाहिए। इस पीढ़ी को व्यसनमुक्त होकर अपने माता-पिता की सेवा करने, उनके प्रणाम करने के तरीको को ज‍ीवन में अपनाना चाहिए।

जीवन में सदाचार को अपना कर हमें अपने विचारों को बदलना होगा। विचार जीवन का प्रतिबिंब है। संतों की संगति से अच्छे विचार आते हैं। विचार अच्छे होना हमारी जागरूकता को दर्शाता है। हमारे विचार हमारे जीवन का परिचय देते हैं। रुपया-पैसे का लालच छोड़कर हमें जीवन में धार्मिक आराधना करते रहना चाहिए। जिससे हमारा जीवन और हमारे परिवार का जीवन सार्थक होगा।