Monday, 4 January 2016

पोस्ट BY बब्बु

योग-प्राणायाम के अभ्यास में आड़े आने वाली आंतरिक बाधाएं

योग चिकित्सा हम जारी क्यों नहीं रख पाते हैं ? हम गोलियां खाकर क्यों ठीक होना चाहते हैं ? रोग तो हम पैदा करते है लेकिन चाहते हैं कि डाॅक्टर ठीक कर दे । मनुष्य सरल रास्ता पसंद करता है । हम कठोर कदम पसंद नही करते हैं । सुविधा पसंद क्यों हो गए हैं ? ठीक होना सब चाहते हैं लेकिन सरल रास्ते से व अपनी शर्तों पर इसलिए ठीक नहीं हो पाते है ।
योगासन व प्राणायाम करते वक्त बहुत से विघ्न आते हैं । मन कहता है कि अरे इन आसनों से क्या हो जाएगा । ज्यादा योग मत करो । कभी मन नहीं लगता है । कभी ब्रेक लेने का मन करता है। कभी शरीर जंभाई लेने लगता है । कभी थकान का भाव मन में आता है । कभी कमजोरी लगती है । कभी कहीं दर्द उठता है ।
young woman training in yoga pose on rubber mat isolated
हम योग क्यों नहीं करते है ? अधिकांश लोगों को योग करना सुहाता नहीं है । योग करने में समस्याएं क्या है ? इसका महत्व नहीं जानने वाले योग नहीं करते हैं । योगाभ्यास जारी रखने में प्रमुख बहाने वाली बाधाएं निम्न प्रकार से हैः-
1. आत्मछवि – हम अपने मन में अपनी छवि रखते हैं । यह जब खराब होती है तो व्यक्ति यथा स्थिति वादी रहता है । ऐसे मे वह परिवर्तन का विरोध करता है । वह अपनी आदतों को बदलना नहीं चाहता है व उसमे स्वयं को सुरक्षित समझता है । ऐसे लोग हताश हो जाते हैं ।
2. नजरिया – स्वस्थ दृष्टिकोण के अभाव में व्यक्ति अच्छी तरह सोच नहीं सकता है । उसे योग प्राणायाम बोरियत लगते हैं । वह अपने पूर्वाग्रहों के कारण उसका महत्व समझ नहीं पाता है ।
3. लगाव – कुछ व्यक्यिों का लक्ष्य स्पष्ट नहीं होता है । अतः स्वास्थ्य को महत्व नहीं देते हैं । धन व शोहरत कमाने में डुबे रहते हैं । योग से स्वयं अपना लगाव नहीं स्थापित कर पाते हैं । कामुक व पेटु व्यक्ति योग पसंद नहीं करता है । इनके पास योग नहीं करने के अनेक बहाने होते हैं ।
4. योग की शक्ति पर अविश्वास – हमें योग की शक्ति पर भरोसा नहीं होता है । ‘‘योग से क्या हो जाएगा’’ की तरह की बात करते हैं । उन्हे सदैव संशय रहता है । ऐसे व्यक्ति योग नहीं करते हैं ।
5. गलतफहमियां – कुछ व्यक्ति गलतफहमियों के कारण योगाभ्यास नहीं करते हैं । वे अपनी सुविधा अनुसार बातों की व्याख्या कर लेते हैं । ऐसे व्यक्तियो के मन में योग के प्रति कोई दुर्भावना होती है । वे योग का सही मूल्य नहीं जानते हैं।
6. बीमारी – शरीर बीमारी के कारण योग करने में असमर्थ होता है इसलिए बीमार लोग नियमित योग कर नही पाते । रोगी के कुछ अंग जकड़ जाते हैं या कड़क हो जाते हैं । शारीरिक कमजोरी के कारण कुछ लोग योग कर नहीं पाते हैं ।
7. आलस्य – कुछ व्यक्ति सुस्ती के कारण योग नहीं कर पाते हैं । योग करते वक्त उन्हे जंभाई आती है । प्रतिदिन चाहकर भी ऐसे व्यक्ति योग निरन्तर कर नहीं पाते हैं । समय नही का रोना सदैव रोते रहते हैं ।
8. लापरवाही – कुछ साथी ‘सब चलेगा’ के भाव में जीते हैं । अतः योग करना उन्हे कठिन लगता है । अतः स्वयं के प्रति भी जिम्मेदारी नहीं लेते हैं । ऐसे लोग कार्याें की प्राथमिकता तय नहीं करते हैं । जो प्रत्यक्ष होता है वही करते है । वे सबके लिए दूसरों को दोष देते हैं । ऐसे लोग खुद सकारात्मक नहीं होते हैं ।
9. थकान – सदा थकान अनुभव करने वाले भी योगासन अच्छी तरह कर नहीं पाते हैं । कुछ लोग थकान के कारण योग करने से डरते हैं ।
10. अज्ञान-अशिक्षा

क्षमा कर तनाव मुक्त होएं

मा कीजिए, मेहरबान,
आज क्षमा वाणी का पर्व है। जैन दर्शन का यह एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त हैं। जैन धर्म में क्षमा का बडा महत्व बताया है। पर्युषण पर्व की समाप्ति पर जैनी परस्पर क्षमा मांगते है।लेकिन आज यह एक रस्म अदायगी बन गया है। क्षमा माॅगने के क्रम में भी हम लोग पाखण्ड बढाते जा रहे है।  मैं मन ,वचन, काया से किये गये ंअपनी गलतियों व भूलों के लिए आप सब से क्षमा मागंता हुॅ।यह में एक कर्मकाड की तरह औपचारिकता भर निभा रहा हुॅ।इसी बहाने  क्षमा पर विवेचना भी कर रहा हुॅ । Forgive us
भगवान महावीर ने  क्षमा वीरस्य भूषणम कहा है। जैसा कि क्षमा एक व्यवहार ुशलता ही नहीं बल्कि एक सद्गुण भी है। क्षमा एक धर्म भी है। क्षमा कर आप बड़प्पन दिखाते है एवं स्वयं के लिए शान्ति खरीदते है। क्षमा करने में कोई धन नहीं लगता है। क्षमा भविष्य के संबंधो का द्वार है इसी से संबंध बनते है। क्षमा करने वालो को पछताने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
क्षमा करने की आदत होनी चाहिये। दिल से माफ करना चाहिए व दिल से क्षमा मांगनी चाहिए। जब आप शब्दो से क्षमा मांगते है  वह मात्र 10 प्रतिशत है, आॅखों से क्षमा मांगना 20 प्रतिशत है, दिमाग से मांगना 30 प्रतिशत है एवं 40 प्रतिशत मांगना दिल से होता है। सामने वाला व्यक्ति आपकी देह भाषा को पढ़ लेता है। इसलिए क्षमा मन, वचन एवं कर्म से मांगनी चाहिए। मात्र शब्दों से क्षमा न मांगे। दूसरों को माफ कर आप अपने तनावों का मिटाते हैं। स्वयं पर उपकार करते है।
स्वयं को क्षमा करना सबसे बड़ी व पहली क्षमा है। माफी से माफ करने वाला भी हलका होता है।उसे लगता है जैसे क्षमा करने से उसके सिर से बोझ उतर गया है। क्षमा करनें में दूसरा व्यक्ति इतना महत्वपूर्ण नहीं है। क्षमा आप अपने से प्रारम्भ करें व सबको क्षमा करें। तभी तों किसी नें ठिक ही कहा है कि दुश्मन के लिए भट्टी इतनी गरम न करे कि आप भी उसमें जलने लगे।
कुछ लोग क्षमा को कमजोरों का हथियार मानते है। क्षमा करने से दुर्जनों को बल मिलता है ऐसा कहते है। क्षमा करना दण्ड व्यवस्था के विपरीत है। स्वाभिमान भी जैसे के साथ तैसा व्यवहार करने को कहता है। मेरे मन का एक अंश क्षमा के विरूद्ध है। मुझे भी तो सभी क्षमा नहीं करते फिर मैं क्यों माफ करूं। मुझे माफ करने में मुझे मूर्खता, बेवकूफी, दुश्मनों का प्रोत्साहन देने जैसा लगता है। उपरोक्त तर्क में दम कम है। लेकिन तर्को की अपनी सीमा है। तर्क हमेशा सत्य पर नहीं ले जाते है।
यदि मैं दिल से क्षमा नहीं मांगता हूं तो मुझे भी क्षमा नहीं मिलती है। प्रकृति या आत्मा या मन एक कल्पवृक्ष है। हम सब यहां जैसा जितनी गहराई से मांगते हैं वैसा ही परिणाम पाते है। इसलिए दिल से क्षमा मांगना जरूरी है। मांफी मांगने के पूर्व स्वयं के मन की एकरूपता, सच्चाई व पूर्णतया आवश्यक है।
भगवान बुद्ध अपने पर थूंकने वाले को क्षमा कर देते है। भगवान महावीर चण्डकोशिक को काटने पर क्षमा कर देते है। भगवान ईसा ने तो स्वयं को सूली पर चढ़ाने वालों के लिए कहा था ‘‘हे प्रभु! इन्हें क्षमा करना ये नहीं जानते हैं कि ये क्या कर रहें है।’’ ईसाई धर्म में भी क्षमा हेतु चर्च में एक कक्ष होता है जहां जाकर व्यक्ति अपने कृत्यों पर प्रभु से क्षमा मांगता है।
मैंने  अपनी तरह से सबकों तहे दिल से माफ कर दिया है। मैंने स्वयं को भी बक्श दिया है। क्या आप मुझे माफ करेगें ? क्या आप मुझे माफ कर सकतें है ?
उत्तम क्षमा, सबको क्षमा, सबसे क्षमा

महान् लेखक बनने की कंुजी और मोपासां

प्रसिद्ध फ्रासीसी साहित्यकार मोपासां ;डंनचंेेंदजद्धबचपन से ही लेखक बनने की जिद करने लगा था। तब उसकी समझदार मां अपने परिचित प्रसिद्ध लेखक फ्लोएर्बेट ;थ्संनइमतजद्ध के पास ले गई एवं उनको बताया कि मेरा बेटा लेखक बनना चाहता है। अतः वह आपसे लेखक बनने के सूत्र जानना चाहता है।GDMaupassant
वे उस समय व्यस्त थे। फ्लोएर्बेट ने एक माह बाद बुलाया।
ठीक एक माह बाद बच्चा मोपासां उनके पास पहुँच गया। उन्होने उसे पहचाना नहीं तब उसने अपनी मां का परिचय देकर बताया कि वह लेखक बनने के सूत्र सिखने आया था तब आपने एक माह बाद आने को कहा था।
तब फ्लोएर्बेट ने टेबल पर पड़ी एक किताब उसे दी और कहा कि इसे याद करके आओ।
मोपासां उस किताब को महीने भर में पूरी तरह याद कर फिर उनके पास पहुँच गया। तब गुरु ने फिर पूछा कि क्या पूरी किताब याद कर लीं।
मोपासां ने कहा-हां कहीं से भी पूछ लिजिए। वह किताब एक बड़ी डिक्शनरी थी।
फ्लोर्बेएट आश्चर्य से उस बालक को देखते रहे फिर पूछा कि खिड़की के बाहर से क्या दिखाई देता है?
बालक ने कहा ‘‘पे़ड’’- कौनसा पेड़-‘‘पाईन का पेड़’’
ओह, ठीक से देखो-‘‘ पास के तीसरे मकान की तीसरी मंजिल से एक लड़की झांक रही है।’’
‘‘और अच्छी तरह देखो’’
तब उसने कहां -‘‘आकाश में चिडि़या उड़ रही है।’’
हां, अब ठीक है।
वह पेड़ सिर्फ पेड़ नहीं है। वह तीन मंजिला मकान, खिड़की से झाँकती लड़की,, वह आसमान, वह चिडि़या, वे सभी उस पेड़ से जुड़े हुए है। पेड़ कभी अकेला नहीं हो सकता है। इसी तरह आदमी के मामले में उसके आस-पास का समाज, उसकी वंश-परम्परा, उसके नाते-रिश्ते के लोग, उसके दोस्त-यार, इन सबको मिला कर ही वह आदमी है। इस तरह वातावरण का भी योगदान होता है। इस तरह की विस्तृत दृष्टि चाहिए।तब जाकर ही साहित्य बनता है।
उसी दिन से मोपासां ने उन्हें अपना गुरु बनाकर उनके सूत्रों का अनुसरण कर एक महान् लेखक बने।

विश्राम क्यों जरूरी : विश्राम न कर पाने के दुष्परिणाम

विश्राम न कर पाने के कारण व्यक्ति बेहोशी में जीता है। उसकी यांत्रिकता बढती जाती है। व्यक्ति सदैव थका मांदा सा जीता है। जीवन पर विश्वास, स्वयं पर विश्वास, अस्तित्व पर विश्वास व्यस्त व्यक्ति नहीं रख पाता है। इससे आत्महीनता व अनेक ग्रन्थियों का जन्म होता है। शारीरिक ग्रन्थियां शरीर में हार्मोन्स का स्राव करती हैं। मानसिक गांठें स्नयु का संतुलन बिगाड़ती हैं। फलस्वरूप अनेक बार व्यक्ति शारीरिक व्याधियों का शिकार होता है।
थका हुआ व्यक्ति श्वास तीव्र व छोटी लेता है। श्वास में समस्वरता व स्थिरता नहीं रहती है। अतः प्रायः अस्थमा का शिकार हो जाता है। जुकाम-खांसी के प्रति संवेदनशील हो जाता है। व्यक्ति की प्रतिरोध क्षमता घट जाती है।
कुछ व्यक्ति पेट के रोगों के शिकार होते हैं। आंतें खिंची रहने से कब्जी, गैस, अपच एवं बवासीर का दुःख उठाते हैं। ढंग से विश्राम न करने वाले व्यक्ति स्वाद का शिकार होते भी देखे जा सकते हैं, जो अन्ततः पेट की बीमारियों का कारण बनते हैं।
जो व्यक्ति मानसिक रूप से मजबूत नहीं होते वे मानसिक रोगी हो जाते हैं। प्रायः सभी मनोरोगी गहरी नींद नहीं लें पाते हैं एवं मनोरोगियों की चिकित्सा का जोर रोगियों को विश्राम देना, नीेंद की दवा देना है। अवसाद व टूटन का मुख्य कारण थकान ही होता है। थकान से व्यक्ति के जीवन का संतोष समाप्त हो जाता है। व्यक्ति सदैव बैचेन रहता हैै। जिसको विश्राम करना नहीं आता है उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। ऐसे शख्स कुछ पाने को सदैव आतुर रहते हैं। निरन्तर कुछ पाने की आकांक्षा मानव को चैन से जीने नहीं देती है।
हम अव्यवस्थित, विश्राम के अभाव में जीते हैं। विश्राम के न होने से मनुष्य का मन स्थिर नहीं होता है। वह अनेक दिशाओं में विभाजित होता है। यही खण्ड जीवन है। टुकड़ों-टुकड़ों में जीवन जीने से जीवन जीने में व्यवस्था नहीं आती है। खण्डित मन समग्रता में नहीं जी पाता है। यही अराजकता व्यक्ति को तोड़ती है। स्वयं से दूर ले जाती है एवं व्यक्ति को थका देती है। थका हुआ व्यक्ति सब जगह परेशानी अनुभव करता है। परेशानियां कहीं से खरीदनी नहीं पड़ती है, यह अव्यवस्था से उपजती हैं। अव्यवस्थित सोच इसकी जड़ में होंती है। इस प्रकार संतुलन की कमी व्यक्ति को भावनात्मक रूप से भी तोड़ देती है। व्यक्ति का सोच सकारात्मक नहीं रहता है, जिससे उसका दृष्टिकोण नकारात्मक बन जाता है।
जीवन में टालमटोल की वृत्ति थकान का परिणाम है। थका हुआ मन कार्य से बचना चाहता है। अतः वह कार्य से बचने के बहाने खोजता है। पलायनवाद हवा से नहीं उपजता है। यह एक मनःस्थिति है जो विश्राम खोजती है। विश्राम को जानने वाला कभी भी कामचोरी नहीं करता है।
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चीनी तम्बाकु से तीन गुना अधिक हानिकारक

शक्कर एक तरह का जहर है जो कि मूख्यतः मोटापे, हृदयरोग व कैंसर का कारण है । भारतीय मनीषा ने भी इसे सफेद जहर बताया है ।tobacco डाॅ0 मेराकोला ने इसके विरूद्ध बहुत कुछ लिखा है । डाॅ0 बिल मिसनर ने इसे प्राणघातक शक्कर-चम्मच से आत्महत्या बताया है । डाॅ0 लस्टींग ने अपनी वेब साईट डाॅक्टर में इसे विष कहा है । रे कुर्जवले इस सदी के एडिसन जो कि 10 वर्ष अतिरिक्त जीने अपने वार्षिक भोजन पर 70 लाख रूपया खर्च करते हैं ने अपने आहार में अतिरिक्त चीनी लेना बन्द कर दी है ।

अधिक शक्कर से वजन व फेट दोनों बढ़ते हैं । डाॅ0 एरान कैरोल तो स्वीटनर से भी चीनी को ज्यादा नुकसानदेह बताते हैं । चीनी खाने पर उसकी आदत नशीले पदार्थ की तरह बनती है । प्राकृतिक शर्करा जो फल व अनाज में तो उचित है । sugar is poision
हम जो चीनी बाहर से भोजन बनाने में प्रयोग करते हैं वह विष का कार्य करती है । यह शरीर के लिए घातक है । डिब्बाबन्द व प्रोसेस्ड फूड में चीनी ज्यादा होती है उससे बचे । अर्थात् पेय पदार्थ व मिठाईयांे के सेवन में संयम बरतना ही बेहतर है।

कौनसा तेल खाए ?

डाॅक्टर बुडवीज तलने के लिए बहुअसंत्रप्त तेल ( poly unsaturated oil) प्रयोग करने के विरुद्ध थी। संतृप्त वसा को गर्म करने पर आॅक्सीकृत नहीं होते हैं और इसलिए गर्म करने पर उनमें एचएनई भी नहीं बनते हैं। Edible Oil इसलिए घी, मक्खन और नारियल का तेल कई दशकों से मानव स्वास्थ्य को रोगग्रस्त करने की बदनामी झेलने के बाद आज कल पुनः आहार शास्त्रियों के चेहते बने हुए हैं। ये शरीर में ओमेगा 3 और ओमेगा 6 का अनुपात भी सामान्य बनाए रखते हैं।
गृहणियों को खाना बनाने के लिए रिफाइंड तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। बल्कि फील्टर्ड तेल का प्रयोग करना चाहिए। इससे भी अच्छा कच्ची घाणी से निकला तेल होता है। हमें कच्ची घाणी से निकला नारियल तेल ,सरसों का तेल या तिल का तेल काम में लेना चाहिए। क्योंकि ये तेल हानिकारक नहीं होते है।
सबसे बढि़या तेल जैतून का तेल होता है जो हमारे यहाँ बहुत मंहगा मिलता है। इसके बाद तिल का तेल (शीसेम आॅयल) एवं सरसों का तेल खाना चाहिए। मूंगफली के तेल में कोलोस्ट्राल की मात्रा ज्यादा होती है अतः वह भी कम खाना चाहिए।
वैसे एक मत है कि हमें अपने आसपास जो तिलहन उगता है उसीका तेल खाना चाहिए।
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हमें कौनसा तेल खाना चाहिए ?

रिफाइंड तेल से कैंसर हो सकता है?

क्या पोषक आहार के होते हुए पुरक आहार की जरूरत है ?

वनस्पति घी भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है

आदर्श स्वास्थ्य एवं जीवन शैली पर पुनर्विचार की आवश्यकता

आरोग्यम् का उद्वेश्य व्यक्ति को स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदार बनाना है। चिकित्सा कार्य सेवा की जगह कमाने का जरिया बन गया है। दवा कम्पनियो ने इसका दोहन व शोेषण शुरू कर दिया है। ऐलोपेथी दवा के प्रभाव से सबसे अधिक मौेते हो रही है। यद्वपि इस विधा ने कई जाने बचाई भी है। हमारा उद्वेश्य ऐलोपेथी का विरोध करना नहीं है। उसका भी योगदान स्वीकार है। विज्ञापन की बदोलत व शार्टकट की खोज ने अन्य विश्वसनीय वेैकल्पिक चिकित्सा को भुला दिया है। चुकि ये मौते तत्समय नही होती है। दीर्घकाल में हानि पहुचाती है , अतः इनसे सम्बन्ध स्थापित करना कठिन है।
हम स्वस्थ रहने हेतु जन्मे है ।शरीर प्रकृति का दिया हुआ उपहार है । हमें उसे संभालना नहीं आता है । प्रकृति अनुरूप नही जीते हैं तभी बीमार होते हैं । प्रकृति की सहज व्यवस्था मनुष्य को स्वस्थ रखने की है । हमारी जीवन शैली रोगों के लिए जिम्मेदार है । मेरा रोग मेरे कारण है। मेरा स्वास्थ्य मेरी जिम्मेदारी है। दूसरो को इस हेतु दोष नही देता हॅू । बच्चा जन्मता स्वस्थ है व बुढापे में बीमार होकर करता है । इस यात्रा में रोग कहाॅ से आया व कौन लाया ? उसके लिये कौन जिम्मेदार है ? Related posts:

प्रेम मंे छिपा है द्वंद्व एवं द्वंद्व मे छिपा है अद्वैत का छंद

वेलेन्टाइन दिवस पर प्रेम का गहन विश्लेषण करता कहानीकार एवं प्रेम खोजी हिमालयी यायावर सैन्नी अशेष का प्रेम और मैत्री नामक लेख ‘‘अहा ! जिंदगी’’ के फरवरी 2014 के अंक में छपा है । इसमे लेखक ने प्रेम के सभी स्वरूपों को तलाशते हुए लिखा है कि आज स्त्री-पुरूष दोनों प्यार में होते हुए भी उसी को तलाशते नजर आते हैं… कहीं संतुष्टि नहीं है तो कहीं रजामंदी नहीं है । इस तरह का द्वन्द्व सबमे है । इस दुविधा से पार पाने की लेखक ने कला निम्न बताई है ।
प्रेम क्या है ?
‘ब्रह्मांड अपनी असीमाओं का दीवाना है । निराकार को आकार देने के उसके अपने दो धर्म है: परस्पर विरोधी ध्रुव, नेगेटिव और पाॅजिटिव ! उनके मिलन से वह स्वयं को सुंदरतर करता आया है। विपरित ध्रुव के मिलन से नवजीवन की रचना होती है।उन दोनों की आपसी कशिश ही सारी दोस्तियों और सारी मुहब्बतों को नए आकाश देती है।द्वंद्वो का स्वीकार ही दो दीयांे को अभिन्न लपट बना सकता है ।’
अस्तित्वगत चेतना ने मानव आत्मओं का नारी और पुरूष में विभाजन गहरे अर्थ से किया है । दोनों में यदि दोनों मौजूद न होते तो एक-दूसरे की खोज में वे इतने दीवाने न होते । अपने संबंधो के उपरले स्तर की उत्तेजना से मुक्त हो जाने के बाद ही वे तन और मन के आत्मिक स्पर्श तक पंहुचते हैं ।’
पाखण्ड क्या है ?
‘स्त्री-पुरूष के पारस्परिक प्रेम और निकटताओं में छिपे हुए परमावश्यक पोषण से आज का पुरूष वर्ग लगभग पूर्णतया वंचित है, क्यांेकि इस संपर्क की पुरी पट्टिका को उसने अपने पशु की मांसल भूख से दूषित कर रखा है । आज कई स्त्रियां पुरूष को हराने के लिए उसी के जैसा कुटिल मार्ग चुनने लगी है ।
‘‘ज्यों ही हम मूल स्वभाव की अनदेखी करके नियमों या नैतिकताओं का विधान बनाते है, हमारे रिश्तों और संपर्कों में भयपूर्ण ढोंग समा जाता है, जिसे हम सभ्यता या संस्कृति तक कह डालते हैं ।’’ अपने अद्र्धांग के प्रेम से बचते हुए आराम से समलिंगी हो जाना या सुविधा से शादीशुदा होकर जीवन सुरक्षित कर लेना जीना नहीं है। उथला प्रेम अतृप्त करता है ।
स्त्री और पुरूष का बाहरी द्वंद्व और भीतर छिपी हुई अभिन्नता
‘स्त्री और पुरूष एक-दूसरे के प्रेम में पड़े बिना सुरक्षित कितने भी हो जाए, वे एक-दूसरे के साथ अपने अनुभवों को जाने और जिये बिना ‘ग्रो’ कर ही नहीं सकते । पारस्परिक द्वंद्वो में पड़े बिना वे न स्वयं को जान सकते हैं, न पा सकते हैं । वे एक-दूसरे का खोया हुआ हिस्सा है, जिसे खोजे और स्वयं में सहेजे बिना वे नपुंसक है । दुनिया की सबसे बढ़ी चुनौती है एक पुरूष का अपने तल की स्त्री को खोजना और एक स्त्री का अपने पुरूष को पा लेना ।’
वह न भी मिले तो भी यह खोज बहुत रचनात्मक और बहुत संगीतमय हो जाती है। हम सब का अवचेतन विपरित लिंग का होता है । पुरूष स्थूल शरीर, पुरूष का चेतन मन व उसका सूक्ष्म शरीर अवचेतन स्त्री का होता है । इसी तरह स्त्री देह में अवचेतन पुरूष का होता है । इसी में पुरूष के भीतर एक स्त्री और एक स्त्री के भीतर एक पुरूष अंगड़ाई लेता है ।
‘अपने प्रिय के विचारों और रूचियों को समझकर उनमे सहमंथन करना, स्वीकृति और अस्वीकृति देने का साहस रखना, सुख-दुख में साथ खड़े होना और अपनी भी रूचि-अरूचि प्रकट कर देना प्रेम और मैत्री के उच्चतर पड़ाव है । प्रेम की खोज विपरित लिंग के साथ रह कर, समझ कर, लड़ते हुए, द्वन्द्व को झेलते हुए स्वयं के भीतर अवचेतन से मिलन होता है । वही पूर्णता है । अपने को जानना व सत्य का साक्षात्कार है । जीवन से तृप्त होना है ।अपनी बंूद को सागर में मिलाते हुए स्वयं सागर होना है ।
ज्यों-ज्यों प्रेम उमड़ता है, प्रियजनों के बीच शब्द उतने नहीं रह जाते, जितनी कि पारस्परिक तरंगे ऊर्जामय हो उठती है । एक सच्चा मीत जब अचानक हमारा हाथ पकड़ता है, तो हम नवजीवन से झनझना उठते हैं । यह विपरीत धु्रवों से पूर्ण होने वाला अद्भुत सर्किट है ।’
पुरा लेख हाजिर है ।
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क्या कार्य पूरा करने हेतु ‘‘छोटा रास्ता’’ चुनना उचित है ?

जीवन में हम सब ‘‘शोर्ट कट’’ खोजते हैं । अंधी दौड़ में शीघ्र जीतने हेतु ‘‘छोटा रास्ता’’ चुनना अच्छा लगता है । Shortcutछोटे रास्ते से चल कर पाई सफलता उतनी महत्वपूर्ण नहीं है । साध्य व साधन का पवित्र होना आवश्यक है । हमें शोर्ट कट से प्राप्त वस्तु का मूल्य पता नहीं पड़ता है । उसका महत्व समझ मंे नहीं आता है । शोर्ट कट कई बार महत्वपूर्ण को भूला देता है व गैर जरूरी महत्वपूर्ण हो जाते हैं । इससे प्राथमिकताओं के चयन में गड़बड़ी होने से अव्यवस्था व अशान्ति मिलते हैं ।
छोटे रास्ते से चल कर अन्ततोगत्वा जीतने का प्रमाण नहीं मिलता है । कई बार छोटे रास्ते अव्यवस्था उपजाते हैं । बेईमानी बढ़ाते हैं, दूसरों का हक छिनते है, कामचोरी बढ़ाते हैं जो जीवन-मूल्यों के विरूद्ध है । जीवन मूल्यों को खो कर कुछ भी पाना अर्थहीन है । मात्र छोटे रास्ते से मेहनत बचती है व सरलता से तत्काल कार्य सिद्ध हो जाता है । अन्ततोगत्वा छोटा रास्ता चुनने वाले को दीर्घकाल में हमेशा हानि होती है ।
आज के रोगी वैकल्पिक चिकित्सा को दीर्घ होने के कारण उसे न चुन कर एलौपैथी को पसंद करते हैं क्योंकि उसमे तत्काल लाभ होता है । यद्यपि एैलोपैथी की दवाईयां के पाश्र्व प्रभाव हानिकारक होते हैं । हमने टी.एन. का उसी तर्ज पर जिज्ञासु का आपरेशन कराना चुना ।
तभी किसी ने लिखा है कि
रास्ता चलना स्वच्छ चाहे फेर हो, काम करना उत्तम चाहे देर हो ।
भोजन करना मां से चाहे जहर हो, सलाह लेना भाई से चाहे बैर हो ।।

स्वस्थ रहने एवं बीमारियों से बचने हेतु पानी पानी पीने के नियम

पानी सही तरीके से नहीं पीने के कारण हमे कई बीमारियां होती है । जैसे खड़े खड़ेे पानी पीने से घुटनों में दर्द एवं अन्य बीमारियां होती है । इसलिए सही तरीके से पानी पीना बहुत जरूरी है । पानी कम पीने से पथरी होने की सम्भावना है । पानी पीने के नियम निम्न प्रकार है स्वस्थ रहने के लिए जिनका ध्यान रखना जरूरी है प्रातः उठते ही तांबे के जग में रात भर रखा पानी पीना चाहिए । बिना कुल्ला किये दो से तीन गिलास पानी बैठ कर पीए । गिलास को मुंह से लगाकर धीरे-धीरे पानी पीएं । इसके बाद बाथरूम आदि करें ।
भोजनभोजन के दौरान पानी पीने से मधुमेह, पेट बड़ा होने व अपच रहने की सम्भावना है । इसलिए खाना खाने के एक-डेढ़ घंटे बाद पानी पीए । इसके बाद प्रति घंटे पानी पीए ।
भोजन करते वक्त व उसके आधा घंटा पूर्व पानी नहीं पीना चाहिए । सुखे मेवे, भारी नाश्ता, चाय व दुध के बाद जल न पीए । फल खाने के तत्काल बाद जल पीने से जुकाम हो सकता है । शारीरिक श्रम के तत्काल बाद पानी न पीए ।
पानी पीने के बाद पेशाब करें । आवश्यक हो तो पेशाब करने के बीस मिनट बाद पानी पीए ।
नहाते वक्त पानी सबसे पहले सिर पर डालें । के दौरान पानी पीने से मधुमेह, पेट बड़ा होने व अपच रहने की सम्भावना है । इसलिए खाना खाने के एक-डेढ़ घंटे बाद पानी पीए । इसके बाद प्रति घंटे पानी पीए ।
भोजन करते वक्त व उसके आधा घंटा पूर्व पानी नहीं पीना चाहिए । सुखे मेवे, भारी नाश्ता, चाय व दुध के बाद जल न पीए । फल खाने के तत्काल बाद जल पीने से जुकाम हो सकता है । शारीरिक श्रम के तत्काल बाद पानी न पीए ।
पानी पीने के बाद पेशाब करें । आवश्यक हो तो पेशाब करने के बीस मिनट बाद पानी पीए ।
नहाते वक्त पानी सबसे पहले सिर पर डालें ।

मधुमेह ( diabetes) की घरेलु चिकित्सा

  • मेथीदानाः- दरदरे पीसे हुए मेथीदाने के चुर्ण की फक्की मात्रा 20 ग्राम से 50 ग्राम सुबह-शाम खाना खाने से 15-20 मीनट पहले लेते रहने से मूत्र व खून में शक्कर की मात्रा कम हो जाती है । आवश्यकता अनुसार तीन से चार सप्ताह तक लें । गर्म प्रकृति वाले विशेष ध्यान दे । गर्म प्रकृति वाले इसे मट्ठे या छाछ के साथ ले । अनुकूल होने पर मात्रा 70 से 80 ग्राम दोनो बार की मिलाकर ले सकते हैं । हानि रहित है ।
  • जिन रोगियों को बार-बार पेशाब आना, अधिक प्यास लगना, घाव धीरे-धीरे भरना ऐसे लक्षण हो उन रोगियों को वजन घटाना चाहिये, बशर्ते अगर उनका वजन उंचाई के हिसाब से अधिक हो तो हर दस-पन्द्रह दिनों में शुगर की जांच करवाते रहे । सामान्य वजन वाले नहीं । वैसे रोगी को स्वयं ही इसका अनुभव होने लगेगा ।
  • गर्म तासीर के पदार्थ माफिक नहीं आने वाले रोगियों के लिए रात्रि में मेथीदाना भीगोकर और सुबह-शाम निथार कर उसका जल पीना अति उतम रहेगा । विशेष कर सभी रोगियों के लिए गर्मियों में भीगा हुआ मेथीदाना फेंकने के बजाय खा लेनेे से विशेष लाभ होता है ।
  • गेहुं का आटा छानने के बाद जो चोकर बच जाता है उसे 20 ग्राम लेकर उसमे पानी मिलाकर आटे की तरह गुंथ ले और उसकी पेड़े की तरह टिकिया बना ले । उस टिकिया को तवे पर भून ले और प्रातःकाल खाली पेट इसका सेवन 6 माह तक करे । शुगर से मुक्ति मिल जायेगी।
  • गेहु के आटे को भूरा होने तक लोेहे की कड़ाही में ही भूने, उसमे दो या तीन चम्मच तेल मंुगफली या सरसों तेल मिलाकर उस आटे से रोटी बनाकर ही खायें । ऐसा करने से इन्स्यूलिन की जरूरत नहीं रहेगी और न ही मधुमेह का खतरा रहेगा ।
  • गेहुं के 5 किलो आटे में आधा किलो जौ, आधा किलो चना देशी, पाव भर मेथीदाना मिलाकर उपर बताये अनुसार भूनकर खाते रहने से मधुमेह रोगी इस बीमारी से निजात पा सकता है ।
  • विशेषः- आटे मे मोयन के लिए सिर्फ-मुंगफली तेल, सरसों तेल या जैतुन का तेल ही प्रयोग में लावें । सोयाबीन, सुरजमुखी या सफोला जैसे तेल का उपयोग नहीं करें ।
  • अमरूद का एक या दो स्वच्छ किटाणु रहित पत्तों को थोड़ा कुटकर रात्रि को कांच के गिलास में (पात्र धातु का न हो) या चीनी मिट्टी के प्याले में भिगोकर सुबह खाली पेट पीने से एक माह में ही अनुकूल परिणाम नजर आयेगें । दवा की जरूरत नहीं रहेगी ।
  • जामुन की चार-पांच पत्तियां सुबह एवं शाम को खाकर चार-पांच रोज पश्चात शुगर टेस्ट करवायें । आशा से अधिक वांछित परिणाम आयेगें ।
  •  नीम की सात से आठ हरी मुलायम पत्तियां सुबह हर रोज खाली पेट चबाकर उसका रस निगल जाये ऐसा नियमित करते रहने से शुगर पर नियन्त्रण बना रहता है, एवं दस-पन्द्रह दिन तक यह प्रयोग करने के बाद आप जरूरत के मुताबिक चाय मिठी और मीठा भोजन भी ले सकते हैं । शुगर आपका कोई भी नुकसान नहीं कर सकती है ।
  • पत्तियां चबाने के पांच से दस मिनट के अन्तराल पर हल्का या पेट भर नाश्ता अवश्य लें । अन्यथा हानि होने की प्रबल संभावना रहती है ।
  • नियमित रूप से तुलसी की दो से चार पत्तियां लेते रहने से रक्त शर्करा में अवश्य ही फायदा होगा । साथ में अन्य कई बीमारियों में भी विशेष फायदा देगी । अल्सर वाले मरीजों को विशेष फायदा होगा ।
  • उपरोक्त बातों के अलावा भी अगर रोगी चाहे तो सुर्य-किरण चिकित्सा द्वारा तैयार किया हुआ पानी प्रयोग में लाकर रोगी शुगर की बीमारी से हमेशा के लिये निजात पा सकता है। । रोगी
  • को दस-बीस रूपये से अधिक धन व्यय करने की जरूरत नहीं रहेगी । सिर्फ आपकी आस्था और विश्वास की जरूरत रहेगी ।
  • विशेषः- शुगर वाला रोगी अगर कपालभाति प्राणायाम 15 मीनट एवं मण्डुकासन 7 से 8 बार करे तो शुगर नियमित हो जाती है एवं उपरोक्त किसी एक विधि को करने के बाद सोने पे सुहागा वाली बात होगी ।

जीवन विद्या के अनुसार मूल्य एवं कीमत में क्या फर्क है ?

मूल्य उपयोगिता पर आधारित होने से शाश्वत व निश्चित है । प्रत्येक इकाई में निहित मौलिकता ही मूल्य है । यह बदलता नहीं है । गेहुं की जो हमे पुष्ट करने की भूमिका है वह सदैव वही रहेगी । कीमत मुद्रा में आंकी जाती है । यह बाजार से निर्धारित होती है । इसका आधार मांग व पूर्ति है । यह रूपयों में होती है । समय-समय पर यह बदलती रहती है । गेहु का बाजार मूल्य भिन्न रहता है । एक ही समय में भी अलग-अलग जगह पर अलग-अलग होता है । पीकासो की पेन्टिंग्स की कीमत बदलती रहती है लेकिन मूल्य वही है जो उसे बनाने के समय था ।
जीवन विद्या प्रणेता  नागराज
जीवन विद्या प्रणेता नागराज
धन सम्पदा कीमत के आधार पर मापते हैं । जबकि मूल्य मापने में मुद्रा की ईकाइ कार्यकारी नहीं है । अधिमूल्यन, अवमूल्यन व निर्मूल्य द्वारा मूल्य गिनते है । जब हम किसी का अधिक मूल्य आंकते हैं तो वह अधिमूल्यन है । कम मूल्य नापना अवमूल्यन है । मूल्य नहीं जानना निमूल्यन है ।
कार का क्या मूल्य है ? अच्छी कार किसे कहते हैं ? क्या वह यन्त्र जो प्रकृति चक्र तोड़े वह अच्छा है।
प्लास्टिक प्रकृति विरोधी इसी कारण है । उसके कण टूटते नहीं है । वह विघटित नहीं होता है । अतः जिन परमाणुओं से बना है उसमे पुनः रूपान्तरित नहीं होता है । तभी तो उसके ढेर पृथ्वी पर बढ़ते जा रहे हैं । यह संतुलन को तोड़ रहा है । क्या हमे मजबूति एवं सुविधा के कारण इस चक्रके तोड़ने मंे सहयोग देना चाहिए । इसी समझ के बढ़ने पर हम प्लास्टिक का उपयोग नहीं कर पाते हैं । अर्थात प्लास्टिक का मूल्य कुछ भी नहीं है 

जीवन विद्या शिविर :स्वयं को जांचने व मापने की कला सीखी

मैने गत माह स्वराज यूनिवर्सिटी  द्वारा आयोजित  जीवन विद्या के शिविर में भाग लिया ।बाबा नागराज   द्वारा रचित जीवन विद्या शिविर के    विनिश गुप्ता   प्रबोधक थे  । मैं स्वयं क्या हुं, मेरा शरीर के साथ क्या रिश्ता है, शरीर की मांगे क्या है, परिवार किसे कहते हैं, समाज व प्रकृति से जुड़ाव मेरा कितना है व सह-अस्तित्व मंे कैसे जीना आदि मूल प्रश्नों पर मंथन करने मिला । सही समझ क्या है व इसको कैसे जीवन मंे प्रयोग लाना पर संवाद किया ।इसको मध्यस्थ दर्शन  भी कहते  है ।Tapowan, Udaipur
आधार बिन्दु
शिविर के आधार बिन्दु बहुत महत्वपूर्ण है । प्रबोधक कभी भी अपने विचार, दर्शन, ज्ञान व अनुभव नहीं थोपता है । अपनी बात को वह प्रस्ताव बताते हंै कि संभागी उसे जांचे । आपकी सहज स्वीकृति है या नहीं । अर्थात बिना यदि परन्तु के उसे मानते हैं । प्रबोधक को संभागी की सहमति नहीं चाहिए । दूसरा आधार बिन्दु शब्द पर न जाए, उसके अर्थ पर जाए । शब्द मात्र संकेतक है । अर्थात शब्दों मंे न उलझे । विपरित, दूरवर्ति या काल्पनिक अपने पूर्वाग्रह के आधार पर अर्थ न लगाए ।
इस शिविर में अन्य किसी की बात न करंे मात्र अपनी बात करें । ताकि विषयान्तर न हो व विस्तृत (डिटेलिंग) होने से बचे ।
यह स्वयं में, स्वयं की शोध की प्रक्रिया है, स्वयं को समझने एवं स्वयं के विकास की प्रक्रिया है ।हम दूसरों जैसे नही अपने जैसे बने । हम अपनी सोच-विचार अनुसार बनते जाते हैं । सोच का आधार मान्यताएं है । इन मान्यताओं को देख कर इनका परीक्षण करने की जरूरत है । स्वयं का निरीक्षण, परीक्षण कैसे करना सीखा । अभी तक जो सिखा हुआ है उसका आंकलन करने की कला सीखी ।
यह मौलिक प्रश्नों को खड़ा करती है । मुलभूत प्रश्नों के समाधान खोजती है । तत्काल कोई राहत नहीं देती है । यह वेल्यू लेब व फोरम से भिन्न है ।
यहां दिन भर अपने पर कार्य करने मिला । स्वयं की सोच व कृत्यों का अवलोकन हुआ कि मेरे भीतर क्या सोच चल रहा है । उस सोच को रोकना है । सोच के बहाव में नहीं बहना है । रूक कर देखा तो सुविधा से ही सब कुछ नहीं मिल सकता का भास हुआ । सम्बन्धों की तरफ ध्यान गया व उनका महत्व समझ में आया । अपनी भौतिक उन्नति ही विकास/सफलता नहीं है । यह साफ-साफ देखने मिला ।
अपने वैभव को प्राप्त करना है तो स्वयं को समझना होगा । ईमानदारी से जिम्मेदारी लेकर अपनी भागीदारी खोज कर ही स्वराज भोगा जा सकता है । स्वतन्त्र होने इतना तो करना ही पड़ेगा । अन्ततोगत्वा विधि, तकनीक, योग कार्य नहीं आते हैं । स्वयं का जागरण ही उपादेय है ।                                                  (to be continued….)

अस्तित्व आपके लक्ष्यों को पुरा करने का षड्यन्त्र करे !नव वर्ष की शुभकामनाएँ !

दोस्तो,
आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !Image
मेरे भीतर बैठी विराट सत्ता आपके भीतर विराजमान परम सत्ता को सर झुकाती है। आपके निकटस्थ मित्र शरीर को प्रणाम जिसके होने से आपका जीवन हैं। दुनिया के सबसे बडे सुपर कम्प्यूटर आपके मस्तिष्क को प्रणाम। उस दिल को नमन जो आपके जन्म से आज तक साथ दे रहा है। उन फेफड़ों को प्रणाम जो आज तक आपको श्वास लेने में मदद दे रहे है। अस्थि तन्त्र को प्रणाम जो आपके शरीर को आकार दिये हुए हैं। उस पाचन शक्ति को नमन जो पहले दिन से आपके भोजन को ऊर्जा में बदलते है।उस स्नायू तन्त्र को प्रणाम जो दुनिया में व्याप्त समस्त टेलिफोन जाल से सात गूना बड़ा है।अन्तः स्त्रावी ग्रन्थियों व प्रजनन तन्त्र को प्रणाम जो शरीर व दुनिया को सन्तुलित रखने में जिनका योगदान है।
परम सत्ता से प्रार्थना है कि नव वर्ष में आपकी सभी कामनाएँ पूरी करें।आप सबसे महत्वपूर्ण है।आप अनुपम व अद्वितीय हैं चुँकि आप ही जगत हैं।

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1 comment:

  1. I found this blog informative or very useful for me. I suggest everyone, once you should go through this.

    कपालभाति प्राणायाम

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