किसी से प्यार करो पर विश्वास नहीं..... क्या संभव है ?
हम जिस किसी से भी मोहब्बत करते हैं उस पर सहज ही विश्वास करने लगते हैं. यह एकदम सामान्य सी बात है. ऐसा हो ही नहीं सकता की जिसे हम प्यार करें उसका विश्वास ही ना करें. असल में तो होता यह है की जब कोई व्यक्ति हमें अच्छा लगने लगता है तब हम उसकी हर अच्छी बुरी बात को भी पसंद करने लगते हैं और विश्वास करना इसी पसंद करने वाली भावना का अगला पढ़ाव होता है.
इसका अर्थ यह हुआ की ये कहना बिलकुल गलत है की प्यार करो पर विश्वास नहीं. ऐसा हो नहीं सकता.
वैसे क्या कुछ ऐसा हो सकता है की आदमी किसी पर विश्वास तो करे पर उससे मोहब्बत ना करे..... हाँ ऐसा तो हो सकता है की हम किसी व्यक्ति की बातों का विश्वास तो करें पर उससे प्यार ना करें.
तो क्या ऐसा भी हो सकता है की किसी व्यक्ति से हम घृणा करे पर उसका विश्वास भी करें. ...... शायद ऐसा नहीं हों सकता ... हम जिससे घृणा करेंगे उसकी बातों पर विश्वास तो कभी नहीं करेंगे.
अच्छा अगर हम साधारणतः जिस व्यक्ति से मोहब्बत करते हैं उस पर विश्वास ना करें तो क्या इसका कुछ फायदा होगा?
फायदे तो इस बात में बहुत हैं. उदहारण के लिए ..........
एक लड़की एक लड़के से मोहब्बत करती है. लड़का उसे अकेले में मिलने के लिए बुलाता है. चूँकि लड़की लड़के से मोहब्बत के साथ साथ विश्वास भी करती है अतः उससे मिलाने के लिए अकेले चली जाती है और वहां लड़का आपने दोस्तों के साथ मिलकर लड़की से बलात्कार करता है. तो अपने विचार के अनुरूप यदि मोहब्बत विश्वास के बिना होती तो बलात्कार नहीं होता.
डिस्कवरी चेंनेल पर अंग्रेज पति फूट फूट कर रोता है. जिस पत्नी को प्यार किया और जिसका विश्वास किया वो बेवफा निकली. उनके बच्चों का पिता कोई और ही था. बन्दे का दिल टूट गया.
आप आपने भाई से मोहब्बत करते हैं आप उस पर विश्वास भी करते हैं पर किसी दिन आपको पता चलता है की आपकी सारी संपत्ति उसने हथिया ली.
जनाब को बेटे से बड़ा प्यार था और उस पर विश्वास भी बहुत था एक दिन पता चला की बेटा बुरी संगत में पड़ कर अपराधी बन गया.
तो क्या कहने वाले की बात सही है की प्यार करो पर विश्वास नहीं
और क्या यह संभव है की हम किसी से सिर्फ प्यार करें उस पर विश्वास नहीं?
ऑफिस में एक बंधू ने यूँ ही बातों बातों में विचार उछाला की मोहब्बत करो पर विश्वास ना करो. सारा ऑफिस उनका विरोधी हो गया. स्त्रियों ने इस विचार का सबसे ज्यादा विरोध किया. उन लोगों का मत था की विश्वास नहीं तो मोहब्बत नहीं. इस विचार के मुखर विरोधियों में से बहुत से ऐसे थे जिनके बारे में मुझे व्यक्तिगत रूप पता है की वो अपने प्रेमियों से विश्वासघात करते हैं. अतः मुझे इस विचार के पक्ष में आना पड़ा. वैसे भी अपनी हमेशा से "मां सेव्यं पराजितः" वाली मानसिकता रही है. मैंने आपने तर्क और कुतर्क लगा कर किसी तरह से बंधू की इज्जत बचायी. मामला वहीँ ख़त्म हो गया पर विचार मेरे मन में अटका ही रह गया.
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